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उपदेशामृत १. मुमुक्षु-समझकी भूल है।
प्रभुश्री-अनादिकी भूल तो मिथ्यात्वकी है। जीवको सब मिला, पर समकित नहीं मिला। 'इसके मिलनेपर, इसको सुनने पर और इस पर श्रद्धा करनेसे ही छूटनेकी बातका आत्मासे गुंजार होगा।' उसके बाद छूटना हुआ है, तब तक सभी अधूरा।
२. मुमुक्षु-यह मिला है, सुन रहे हैं, श्रद्धा कर रहे हैं, तब और क्या करें? यह 'सत्' है ऐसा मानकर बैठे हैं। __ प्रभुश्री-सुना ही नहीं है। दर्शन हुए हैं ? सुना पर गुना नहीं। और करनेका किया नहीं। क्या समझना है? समझ गया, समझ गया करता है। अनादिकालसे समझे बिना कहाँ रहा है? पर जिसे समझना और जानना है, उसे जाना? “एगं जाणइ से सव्वं जाणइ ।' अतः जाना नहीं है। कहनेका तात्पर्य, प्रतीति और श्रद्धा होनी चाहिये। यह काम है। सारे जगतमें श्रद्धा और प्रतीति करता है वह नहीं, जो करनेकी है वह करें।
"जैसी प्रीति हरामकी, तैसी हर पर होय;
चला जाय वैकुंठमें, पल्ला न पकडे कोय." _ऐसी यहाँ सत्में हुई है? प्रीति अनंत है। उसके बिना कोई नहीं है। "प्रीति अनंती पर थकी, जे तोडे हो ते जोडे एह।" जैसी प्रीति इस संसारमें धन-दौलत, बाल-बच्चों पर होती है, वैसी आत्मा पर नहीं हुई। अन्य बातोंमें जो प्रेम होता है, वैसा आत्मापर नहीं हुआ। गुत्थी है, भुलावा हुआ है। यह तो कुछ (भुलावा) है, अवश्य है। पानी (बोध) नहीं मिला तब तक प्यास रहती है; इसे पानी नहीं मिला। इस जीवमें भूल और कमी है। प्रमाद और आलस्यने बुरा किया है। इन चक्षुओंसे देखता है, दिव्य चक्षु नहीं है। अतः बाह्य दृष्टिसे बाह्य फल मिलता है। अंतरात्माको नहीं जान पाता। मुख्य बात यह है। उसे जानना पड़ेगा, तभी दर्शन होंगे। अनंतबार साधन किये, पर हाथ कुछ नहीं आया :
"वह साधन बार अनंत कियो;
__ तदपि कछु हाथ हजु न पर्यो." (श्रीमद् राजचंद्र) कुछ रह गया है। वह जो कर्तव्य है वही रह गया है। विघ्न बहुत हैं। विघ्न अर्थात् कर्म । वे बाधक होते हैं। मुख्य बात यह है। वे न हों तो उसे (आत्माको) दिखायी दे ऐसा है । मूल तात्पर्य क्या है? सब कुछ जप, तप, क्रिया, कमाई की; उसका फल मिला और मिलेगा। किंतु जो करना था वह नहीं किया; वह क्या है? उसे ढूँढ निकालो।
१. मुमुक्षु-सम्यग्दर्शन। प्रभुश्री-देखिये, यह आया, वही कहा जायेगा। यह नहीं आया।
'समकित नवि लयुं रे, ए तो रूल्यो चतुर्गति माहे ।' जप, तप, अन्य सब साधन बादके हैं। सिद्धांतमें सबका सार किसे कहा है? क्या करना चाहिये?
१. मुमुक्षु-सत् श्रद्धा करनी चाहिये। प्रभुश्री-आई, देखिये, अन्य कहाँसे निकलेगा? पहचान नहीं है। आता-जाता है, बैठता-उठता
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