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उपदेशामृत बँधा हुआ कर्म छूटनेसे प्रसन्न होना चाहिये-आर्तध्यान, रौद्रध्यान कर्तव्य नहीं है। ब्रह्म मात्र बाह्यसे (पुद्गलसे) भिन्न है जी।
शांतिः शांतिः
नहीं है वह है, है वह नहीं है।
सभी है।
अन्य। विचार । समझो।
जीव अपनी दृष्टिसे कल्पना कर कर परिभ्रमण करता है। जीवने ज्ञानीकी दृष्टिसे नहीं सोचा । ज्ञानीके घर इजारा है। बाह्यदृष्टिसे आत्मा स्थान-स्थान पर बँधता है। कण बिखेर दिये हैं। बिगड़ा सुधारें। सुधरेको बिगाड़े नहीं।
श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास,
फाल्गुन वदी १२,सं.१९८३ सत्पुरुषका मार्ग, सन्मुख दृष्टि, ज्ञानीका बोध जिसे प्राप्त हुआ है, उसे पूर्वप्रारब्धके उदयसे साता-असाता आने पर उस ज्ञानीकी परीक्षा है जी। स्वभावसे
विभावसेशुद्ध चेतना है।
अशुद्ध चेतना है। सामान्यतः शुद्ध चेतना है। वह भ्रम हैविशेषतः ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय इसके कारण अज्ञान कहलाता है। शुद्ध चेतना है।
जिससे मिथ्या मोह परिणत होकर वे भाव स्फुरित होकर जीवमें रागद्वेष आते हैं, तब विषय कषायकी सहायतासे जीव शुभाशुभ कर्म बाँधता है और भोगते हुए अभिन्नता मानता है, वह पूर्वकर्मके उदयके कारण है जी।
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