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पत्रावलि-१
४१ "इतना ही खोजा जाय तो सब मिल जायेगा; अवश्य इसमें ही है। मुझे निश्चित अनुभव है। सत्य कहता हूँ। यथार्थ कहता हूँ। निःशंक माने।"
"प्रवृत्तिके कार्योंके प्रति विरति ।
संग और स्नेहपाशको तोड़ना (अतिशय कठिन होते हुए भी तोड़ना, क्योंकि दूसरा कोई उपाय नहीं है।) __ आशंका-जो स्नेह रखता है उसके प्रति ऐसी क्रूर दृष्टिसे वर्तन करना, क्या यह कृतघ्नता अथवा निर्दयता नहीं है?" “छोड़े बिना छुटकारा नहीं है।" “अब क्या है?"
शांतिः शांतिः कायरता देशकाल-विपरीतता विपरीत ।
हे आर्य! समेट, अन्यथा परिणामका योग है। अथवा संपूर्ण सुखका प्राप्त योग नष्ट करनेके समान है जी।
अत्यंत स्थिरता, अत्यंत लौकिकभाव, विषय-अभिलाष, स्वेच्छाचार । परमार्थ अपरमार्थ निर्णय अनिर्णय । तथा प्रतिबंध विहार परमपुरुषके समागमका अभाव।
__ "शरीरमें पहले आत्मभावना होती हो तो होने देना, क्रमशः प्राणमें आत्मभावना करना, फिर इंद्रियोंमें आत्मभावना करना, फिर संकल्प-विकल्परूप परिणाममें आत्मभावना करना, फिर स्थिर ज्ञानमें आत्मभावना करना । वहाँ सर्व प्रकारसे अन्य अवलंबन रहित स्थिति करना।" "आतम भावना भावतां जीव लहे केवलज्ञान रे,
जीव लहे केवलज्ञान रे।" आत्मा अमूल्य है। तुच्छ पदार्थों में प्रीति कैसे करूँ? सब भूल जायें । प्रेमको बिखेर रहे हो। उस सर्व परभावमें प्रीति न करूँ। एकमात्र सत्स्वरूप सद्गुरु पर प्रीति करूँ, अन्यत्र कहीं भी प्रेम न करूँ।
ॐ शांतिः शांतिः
५८ सनावद, कार्तिक सुदी १०, रवि, १९७७ हमें समेदशिखरजी साथमें आनेके लिये विचार प्रदर्शित किया सो इस विषयमें पहले हमारी इच्छा थी, उस वृत्तिको अब संकुचित कर लिया है जी; वह शरीर आदि कारणसे तथा आत्महित तो स्वयंसे करना है ऐसे विचार चित्तमें रहनेसे । यदि यह जीव स्वच्छंद एवं प्रमादमें फँसा रहे तो कुछ कल्याण नहीं हो सकता। अतः सद्गुरु देवाधिदेवश्रीके वचनामृतका वाचन-चिंतन कर जैसे आत्मा जागृत हो वैसे करना चाहिये जी। यदि आत्मा ही जागृत नहीं हुआ तो किसी भी कालमें कल्याण होगा ऐसा नहीं लगता। अतः सत्संग, सत्शास्त्र-जिससे आत्महित हो सके वैसी पुस्तकें-का वाचन-चिंतन सत्पुरुषकी आज्ञासे हो तो कल्याण है जी। अब तीर्थयात्राके विषयमें चित्तवृत्तिको संकुचित कर एक आत्मासे पुरुषार्थ करनेकी अंतरवृत्ति रहती है जी। जिसने आत्माको जाना है, उससे उस आत्माको जाने और स्वच्छंद तथा प्रमादको छोड़कर उदयकर्मको भोगते हुए समभावमें रहे तो कल्याण है जी। यह समभाव तो, आत्माको जाने बिना, आना कठिन है जी।
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