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उपदेशामृत
ढूँढकर, उन दोषोंके प्रति घृणा या शत्रुभाव रखकर दोष दूर करनेका पुरुषार्थ करना चाहिये जी । सत्संगका वियोग हो तब तो जीवको विशेष सावधानीपूर्वक, विषय- कषायके वशीभूत न हो जायें, यह देखते रहना चाहिये । विषय कषाय कम करनेका पुरुषार्थ सद्गुरुके वचनामृतके अवलंबनसे किया हो तो सत्संगका योग मिलनेपर विशेष लाभ होना संभव है ।
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बड़ा ग्रंथ ( श्रीमद् राजचंद्र ) वचनामृत-वाचनमें विशेष समय व्यतीत हो ऐसा करना चाहिये । वह सत्संगकी कमी पूरी करेगा । हम सत्संगकी भावना रखते हैं उसके साथ ही योग्यता बढ़े और सत्संग फलदायक हो वैसा पुरुषार्थ कर्तव्य है जी । जिस प्रकारके कर्म पूर्वकालमें बाँधे हैं, वे उदयमें आये हैं, उनसे घबरायें नहीं परंतु समभावसे भोग लें । निरर्थक आशाएँ - इच्छाएँ न बढ़ायें । इच्छा करनेसे कुछ मिलता नहीं । परमकृपालुदेवने लिखा है कि
“क्या इच्छत ? खोवत सबै, है इच्छा दुःखमूल; जब इच्छाका नाश तब, मिटे अनादि भूल. "
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इसे ध्यान में रखकर वासना, तृष्णा, इच्छाओंको रोकना उचित है । इच्छाके रोकनेसे तप होता है । संकल्प - विकल्प घटनेसे आत्मकल्याण करनेके मार्गका भी विचार किया जा सकता है ।
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ता. १९-६-३३ आपने जो प्रत्याख्यान लिये हों वे आपके भाव पर आधारित हैं। यदि आपने दवा आदिकी छूट रखी हो तो वैसा करें। दवाके लिये भी उपयोग न करनेके भाव रहते हों तो वैसा करें। जैसे आपके भाव । पापके कारण तो छोड़ने योग्य ही हैं । किन्तु यदि शक्य न हो तो जितना अपनेसे पालन हो सकता हो उतना ही व्रत लेवें । सात व्यसनमें जिन सात वस्तुओंका त्याग कहा गया है, उनमें से प्रत्येक वस्तुके प्रयोगसे व्यसन हो जाता है, आदत पड़ जाती है, मन वहींका वहीं रहता है, धर्मविघ्न होता है । इस लोक परलोक दोनोंमें हानिकारक हैं और धर्मका नाश करनेवाले हैं । अतः इन्हें दूरसे ही त्यागनेकी वृत्ति रखें । शरीरके किसी कारणवश दवाके लिये उपयोग करना पड़े तो भी वह वस्तु बहुत पापका कारण है ऐसा समझकर, जहाँ तक संभव हो और उस वस्तुसे रहित अन्य कोई दवा मिलती हो तो उससे चला लेना चाहिये । अनेक देशी दवाइयाँ भी होती हैं । यदि दवाई के लिये छूट न रखी हो और दवाईमें अमुक माँस आदि वस्तु पड़ी है ऐसा निश्चय है तो उस दवाईका उपयोग नहीं करना चाहिये । और दवाईके लिये छूट रखनेके भावसे यदि कोई उपयोग करता हो तो वह भी पापका भय रखकर अमुक समय तक उपयोग करना पड़े तो करे; किन्तु यह पापके कारणका सेवन हो रहा है यह भूलना नहीं चाहिये । यह कब छूटेगा, ऐसे भाव रखने योग्य हैं । संक्षेपमें, आपके भाव पर ही सब आधारित है ।
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ता. २३-६-३३
अभी जो दशा है, वह अज्ञानदशा है, बाल अवस्था जैसी दशा है । हम स्वयं जो बोलते हैं, निर्णय करते हैं, मानते हैं वह वैसा ही हो यह संभव नहीं है । अतः जैसे किसी बालकको हम कुछ
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