________________
७६
उपदेशामृत लिये 'दान, शील, तप और भाव' कहे हैं, उनमें अपनी कल्पनासे जो कुछ करता है वह बंधनरूप हो जाता है। इसका स्वरूप समझमें नहीं आया है। यदि उसका स्वरूप समझमें आ जाये तो जीवको सम्यक्त्व प्राप्त करनेका पोषण होता है। शेष तो “सौ साधन बंधन थयां" है जी!
+अहो जीव! चाहे परमपद, तो धीरज गुण धार;
शत्रु-मित्र अरु तृण-मणि, एक हि दृष्टि निहार. १ वीती ताहि विसार दे, आगेकी शुध ले जो बनी आवे सहजमें, ताहिमें चित्त दे. २ राजा राणा चक्रधर, हथियनके असवार; मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी वार. ३ कहां जाये कहां उपने, कहां लड़ाये लाड; क्या जानूं किस खाडमें, जाय पड़ेंगे हाड! ४ जैन धर्म शुद्ध पायके, वरतुं विषय-कषाय; एह अचंबा हो रह्या, जलमें लागी लाय. ५ समकिती रोगी भलो, जाके देह न चाम; विना भक्ति गुरुराजकी, कंचन देह न-काम. ६ ज्ञानीकुं विस्मय नहीं, परनिंदक संसार; तजे न हस्ति चाल निज, भुंकत श्वान हजार. ७
१२० श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, स्टे.अगास
सं.१९८६ शांति, समता, क्षमा, धैर्य, सहनशीलता यह सद्गुरुकी आज्ञा है जी। इस भावनासे शुद्ध भावमें वृत्ति, मन स्थिर हो वैसा करना चाहिये जी। अन्य सब बाह्य भूल जानेका विचार करें। मंत्र 'सहजात्मस्वरूप परमगुरु' आत्मा है, उसे याद रखकर स्मृतिमें जाग्रत रहें। आत्मा है, द्रष्टा है, कर्ता है, भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्षका उपाय है। उसे सद्गुरु परमकृपालुदेवश्रीने जाना है, देखा है जी। उस आत्माकी सत्संगसे श्रद्धा हुई है उसे मानूं। शेष परभाव, बाह्य आत्मासे मुक्त होकर ___+ अर्थ-१. हे जीव! यदि तू परमपदकी इच्छा करता है तो धैर्य धारणकर शत्रु-मित्र, तृण-मणिमें समदृष्टिसे देख । २. जो बीत गया है उसको भूलकर आगेका ध्यान रख। जो सहज होता है उसीमें मनको संतुष्ट रख । ३. राजा, राणा, चक्रवर्ती, हाथियोंके स्वामी सबको अपनी बारी आने पर एक दिन मरना है। ४. यह जीव कहाँसे आया? कहाँ उत्पन्न हुआ? कहाँ लाइप्यारसे बड़ा हुआ? और मरकर किस अधोगतिमें जायेगा? यह कौन जानता है? ५. यदि मैं शुद्ध जैन धर्मको प्राप्त करके भी विषय-कषायमें प्रवृत्ति करूँ तो पानीमें आग लगने जैसी आश्चर्यकी बात होगी। ६. जिसके शरीर परसे चमड़ी उखड़ गई हो ऐसा रोगी भी यदि सम्यग्दृष्टि है तो श्रेष्ठ है, पूज्य है। जिसके हृदयमें गुरुदेवकी भक्ति नहीं है वह कंचनवर्णी काया होने पर भी वृथा है, निर्मूल्य है। ७. परनिंदा करते संसारको देखकर ज्ञानीको विस्मय नहीं होता अर्थात् ज्ञानी उससे डरते नहीं। जैसे हजारों कुत्ते भुंकने पर भी हाथी अपनी चाल नहीं छोड़ता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org