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[ ८७] उपदेशामृत), तथा अपने सद्गुरु श्रीमद् राजचंद्रजीके प्रति एकनिष्ठता-एक आश्रितता-अनन्य श्रद्धापूर्वक अधीन रहकर उनकी परमात्मभक्तिमें प्रतिबिम्बित होता है। उनकी संगतिमें आनेवाले प्रत्येक मुमुक्षु जीवको तथा उनके देहावसानके बाद आश्रममें आनेवाले प्रत्येक मुमुक्षुजीवको इसी प्रकार उत्तम रीतिसे सत्धर्म (आत्मधर्म)की आराधना करने, प्राप्त करनेका पुनः पुनः जीवनपर्यंत उन्होंने निर्देश दिया है, उसे प्रत्येक मुमुक्षुको बहुत बहुत प्रकारसे विचारकर आचरणमें लाना चाहिए।
मानवजीवनके आध्यात्मिक विकास और उद्धारके लिए बृहत् गुजरातने एक नहीं किन्तु अनेक ज्योतिर्धरोंको उत्पन्न कर गुजरात और आर्यावर्तको पावन किया है। श्री नेमिनाथ, श्री राजेमति, श्री कृष्ण, श्री हेमचंद्र, आनन्दघनजी, यशोविजयजी, देवचंद्रजी, चिदानन्दजी आदि गुजरातके घरघरमें सुप्रसिद्ध हैं। इनके मीठे झरनोंका पानी पीकर अनेक भव्यात्मा इस पृथ्वीपर अमरपंथकी ओर बढ़ रहे हैं।
* आशा ओरनकी क्या कीजे ?
ज्ञान सुधारस पीजे. आशा० भटके द्वार द्वार लोकनके,
कुक्कर आशाधारी; आतम-अनुभवरसके रसिया,
ऊतरे न कबहु खुमारी. आशा० आदि सबने अपनी-अपनी आत्मदशाकी लाक्षणिक शैली और जीवित समस्या द्वारा मुक्तिका और उसके पथका-शान्तिका और उसके सुखका-इस जगतको संदेश पहुँचाया है।
इस शताब्दीमें परमकृपालुदेव श्रीमद् राजचंद्र और मुनिश्री लघुराज स्वामीने परमपदकी प्राप्तिके लिए अपना जीवन अर्पण कर गुजरातके धुरंधर ज्योतिर्धरोंकी श्रृंखलामें अपना अद्वितीय स्थान प्राप्त कर मानवजीवनको सदैवके लिए अपनी अमूल्य विरासत प्रदान की है। ऐसे निष्काम महात्माओंको अति विनम्रभावसे पुनः पुनः अभिवंदन हो! और उनके अचिन्त्य योगबलसे जगतका कल्याण हो!
__ + दूसरोंकी आशा करनेकी क्या आवश्यकता है? हम ज्ञानसुधारसके स्वामी है, तो उसीका पान करना चाहिये। अपने पास ज्ञानरूपी धन होने पर भी यह अज्ञानी जीव कुत्तेकी तरह आशावश लोगोंके द्वार-द्वार पर भटकता है। जो आत्माके अनुभवके रसके रसिक हैं वे तो अपनी मस्तीमें ही रहते हैं।
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