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सं.१९८९ के वैशाख सुदी ३ को सूरत जिलेके धामण गाँवमें एक मुमुक्षुभाईके यहाँ परम कृपालुदेवके चित्रपटकी स्थापना. करने प. पू. प्रभुश्रीजी अनेक मुमुक्षुओंके साथ पधारे थे। वहाँ भक्ति, समागम, बोध आदिसे अनेक नये जीवोंको लाभ हुआ था। स्थापनाके बाद लगभग डेढ मास प्रभुश्री नवसारी गाँवके बाहर एक एकान्त बंगलेमें निवृत्तिसे रहे थे। वहाँ भी अनेक जीवोंको सत्संगसे लाभ हुआ था।
सं.१९९० के ग्रीष्ममें प्रभुश्री सूरतमें अठवा लाइन्सके एक बंगलेमें लगभग डेढ़ माह रहे । वहाँसे पाँच-छह दिन चाणोद रुककर व्यासके टापूमें एकाध दिन जाकर आश्रम वापस लौटे।
अहमदाबादमें एलिसब्रिज विस्तारमें श्रीयुत् हीरालाल शाहने एक बंगला बनवाया था। उसमें सभी मुमुक्षुओंके साथ पधारकर भक्ति करने तथा परमकृपालुदेवके चित्रपटकी स्थापना करनेके लिए वे पूज्य प्रभुश्रीजीको कभी-कभी विनती करते तब प्रभुश्री कहते कि अवसर आनेपर देखेंगे।
सं.१९९१के मार्गशीर्षमें एक अपूर्व घटना घटी। अहमदाबादसे डॉक्टर शारदाबहन पंडित कई बार आश्रममें सत्संगके लिए आती थीं। प्रभुश्रीके सत्संग-सद्बोधसे उनको सद्धर्मका रंग चढ़ा देखकर तथा उन्हें बार-बार आश्रममें सत्संगका लाभ लेनेके लिए आते देखकर और प्रभुश्रीके प्रभावसे उनके जीवनमें जागृत पवित्र धर्मभावनाको देखकर उनके एक भाई श्री पंडित, जो धर्मक प्रति विशेष रुचिवाले तो नहीं थे, फिर भी किसी पूर्व पुण्यके उदयसे एकाएक धर्मभावनाके सन्मुख होकर जिज्ञासुवृत्तिसे श्री शारदाबहनको पूछने लगे कि 'तुम जिस महात्माके सत्संगके लिए अगास आश्रममें जाती हो, उनके दर्शनके लिए इस शुक्रवारको मुझे भी चलनेकी भावना हुई है।' श्री शारदाबहन यह सुनकर हर्षित हुई और शुक्रवारको उनके साथ आश्रममें जाना स्वीकार किया।
परन्तु, विधिको कुछ और ही मंजूर था। भाई श्री पंडित अचानक न्यूमोनियासे शय्याग्रस्त हो गये, और आश्रममें जानेकी भावना अब सफल नहीं होगी तो महात्माके दर्शन कैसे होंगे? इसी चिंतामें खाटपर पड़े वे एकमात्र उन्हींका रटन करने लगे।
इस बीच आश्रममें भी प्रभुश्रीने श्री हीरालालभाईको बुलाकर कहा, “प्रभु, इस शनिवारको आपके यहाँ परमकृपालुदेवके चित्रपटकी स्थापनाके लिए जायें तो कैसा रहेगा?" ।
श्री हीरालालंभाई हर्षित होकर सबको शनिवारको अपने यहाँ आनेका निमंत्रण देकर स्वयं तुरत ही अहमदाबाद गये, और शनिवारको आश्रमसे लगभग सौ मुमुक्षुभाइयोंके साथ प्रभुश्रीजी अहमदाबाद पधारे । वहाँ बड़ी धूमधाम और भक्तिभावपूर्वक चित्रपटकी स्थापना हुई। फिर आहार आदिसे निवृत्त होकर दोपहरको थोड़े मुमुक्षुभाइयोंके साथ प्रभुश्री तुरन्त उन भाई श्री पंडितके यहाँ गये। तभी सबको पता चला कि इस भाग्यवान भव्यके उद्धारके लिए ही ये महापुरुष एकाएक यहाँ आये हैं।
श्री पंडितके पलंगके पास प्रभुश्री आये तब वे ज्वरके कारण कुछ अस्वस्थ थे। परंतु श्री
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