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काम, क्रोध नहीं होते हैं। वे बड़े रूप वाले तथा नीरोग होते हैं और दश प्रकार के कल्पवृक्षों का उपभोग करते हैं । वे कल्पवृक्ष निम्नलिखित हैं :(१) मत्तांग-कल्पवृक्ष उत्तम मद्य देते थे। (२) भृत्तांग-कल्पवृक्ष पात्र (बरतन) देते थे। .(३) त्रुटितांग-कल्पवृक्ष तत, वितत आदि चार प्रकार तरह के
बाजे देते थे। (४) दीपांग-कल्पवृक्ष अंधकार हरते थे। (५) ज्योतिरंग-कल्पवृक्ष अग्नि के समान उष्ण प्रकाश देते थे। (६) चित्रांग-कल्पवृक्ष अनेक प्रकार की मालाएँ देते थे। (७) चित्ररस-कल्पवृक्ष अनेक प्रकार के रस देते थे। (८) मण्यंग-कल्पवृक्ष इच्छित आभूषण देते थे। (६) गृहाकार-कल्पवृक्ष घर देते थे। (१०) अनग्न-कल्पवृक्ष मन चाहे कपड़े देते थे। प्रशंसा पत्र ३१४
इस काल के मनुष्य की ऊँचाई तीन कोस की होती है उनकी आयु तीन पल्योपम होती है और उन्हें २५६ पसलियाँ होती हैं।
इस काल में स्थान-स्थान पर उद्दाल-कोद्दाल' आदि वृक्ष स्थूल मूलवाले मनोहर शाखा वाले तथा पत्र, पुष्प और फलों से लदे रहते हैं । गुल्मों२ से (१) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सटीक (६८-१) में इन वृक्षों के नाम इस प्रकार
दिये है :-उद्दाल, कोदाल, मोद्दाल, कृतमाल, नृतमाल, दंतमाल, नागमाल, श्रृंगमाल, शंखमाल और श्वेतमाल उसी ग्रन्थ में गुल्मों के ये नाम दिये है :-सेरिका, नवमालिका, कोरटक, बंधुजीवक, मनोऽवद्य, बीअक, बाण, करवीर, कुब्ज, सिन्दुवार, (जातिगुल्म) मुद्गर, यूथिका, मल्लिका, वासंतिक, वस्तूल, कस्तूल, सेवाल, अगस्त्य (मगदंतिकागुल्म), चम्पक, जाति, नवनीतिका, कुन्द और महाजाति (पत्र १८-२)
गुल्म की परिभाषा टीकाकार शान्तिचंद्रगणिने इस प्रकार दी है :
"हृस्वस्कन्दबहुकाण्डपत्रपुष्पफलोपेता:" (पत्र ६८-२)
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