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(६१) (३) सन् १९३० में डाक्टर याकोबी ने एक लेख लिखा था कि, वैशाली,-मूल वैशाली, वाणियागाम और कुण्डगाम-इन तीनों का समूह था । कुण्डगाम में कोल्लाग नामक एक मुहल्ला था।
-भारतीय विद्या (सिंधी-स्मृति-ग्रन्थ), पृष्ठ १८६ (४) इस कोल्लाग-सन्निवेश से सम्बद्ध, परन्तु उससे बाहर, द्विपलाश नाम का एक चैत्य था । साधारण चैत्य की भाँति उसमें एक चैत्य और उसके आसपास उद्यान था। इस कारण से विपाकसूत्र (१, २) में उसे 'दुइपलासउज्जाग' रूप में लिखा गया है। और, यह नायकुल का ही था, इसलिए उसका "नायसण्डवणे उज्जाणे' अथवा 'नायसण्डे उज्जाणे' इत्यादि रूप में (कल्पसूत्र ११५ और आचाराङ्ग २; १५; सू० २२) वर्णन किया गया है।
-जैन-साहित्य-संशोधक, खण्ड १, अंक ४, पृष्ठ २१६ । (५) महावीर के पिता सिद्धार्थ कुण्डग्राम अथवा वैशाली नगर के कोल्लाग नाम के मोहल्ले में बसनेवाली 'नाय' जाति के क्षत्रियों के मुख्य सरदार थे !...सिद्धार्थ का कुण्डपुर अथवा कुण्डग्राम के राजा के रूप में सर्वत्र वर्णन नहीं किया गया है, अपितु इसके विपरीत सामान्य-रूप में उन्हें साधारण क्षत्रिय- (सिद्धत्थे खत्तिये) रूप में वर्णन किया है, जो एक-दो स्थानों पर उन्हें राजा (सिद्धत्थे राया) रूप में लिखा है, उसे अपवाद ही समझना चाहिए ।
–डाक्टर हारनेल का उपर्युक्त लेख (ख) सिद्धार्थ एक बड़ा राजा नहीं, अपितु अमीर मात्र था।
--डाक्टर हर्मन याकाबी-लिखित 'जैन सूत्रो नी प्रस्तावना' अनुवादक शाह अम्बालाल चतुरभाई, 'जैन-साहित्य-संशोधक' खण्ड १, अङ्क ४, पृष्ठ ७१ ।
(६) महावीर की जन्मभूमि कोल्लाग ही थी, और इसी कारण से उन्होंने जब संसार त्यागा तब स्वाभाविक रीति से ही अपनी जन्मभूमि के पास स्थित द्विपलाश नाम के अपने ही कुल के चैत्य में जाकर रहे । (देखो, कल्पसूत्र ११५-११६)
-डाक्टर हारनेल का उपर्युक्त लेख ।
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