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(१११) तए णं ते वहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स पुव्वभवचरियणिबद्धं च देवलोयचरियणिबद्धं चवण चरियणिबद्धं च संहरणचरियणिबद्धं च जम्मणचरियनिबद्धं च अभिसेअचरियणिबद्धं च बालभावचरियणिबद्धं च जोव्वणचरियनिबद्धं च कामभोगचरियनिबद्धं च निक्खमणचरियनिबद्धं च तवचरणचरियनिबद्धं च णाणुप्पायचरियनिबद्धं च तित्थ पवत्तण चरिए-परिनिव्वाण चरिय निबद्धं च चरिमचरियनिबद्धं च णामं दिव्वं गट्टविहिं उवदंसेति-- -
इसकी टीका करते हुए लिखा है :
"तदनन्तरम् च श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य १ चरमपूर्वमनुष्य भव (२ देवलोक चरित्र निबद्धं) २ चरमच्यवन ३ चरमगर्भसंहरण ४ चरम भरतक्षेत्रावसर्पिणीतीथेकर जन्म ५ अभिषेक ६ चरम बालभाव ७ चरम यौवन ८ चरम कामभोग ९ चरम निष्क्रमण १० चरम तपश्चरण ११ चरम ज्ञानोत्पाद १२ चरम तीर्थ-प्रवर्तन १३ चरमपरिनिर्वाण निबद्धं १४ चरमनिबद्धं नाम द्वात्रिंशत्तमं दिव्यं नाट्यविधिम् उपदर्शयन्ति ।
३२-वें नाटक में भगवान महावीर का ही जीवनचरित्र दर्शाया गया। उसमें (१) भगवान् महावीर के २५-वें भव में छत्रा नगरी में नन्दन नामक राजा की कथा (२) दसवें देवलोक गमन की कथा (३) च्यवन (४) गर्भसंहरण (५) भरतक्षेत्र में चरम तीर्थंकर रूप में जन्म (६) जन्माभिषेक (७) बालभाव-चरित्र (८) यौवन-चरित्र (8) कामभोग-चरित्र (१०) निष्क्रमण-चरित्र (११) तपस्या (१२) केवल-ज्ञान की प्राप्ति (१३) तीर्थप्रवर्तन (१४) परिनिर्वाण बातें दर्शायी गयीं।
नाटकके इन ३२ प्रकारों के उल्लेख अन्य जैन आगमों में भी आते हैं। भगवती सूत्र में 'बत्तीसइविंह नट्टविहिं आया है । उसकी टीका करते हुए अभयदेव सूरी ने लिखा है
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