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(२४४) चातुर्मास के बाद विहार करके भगवान जंभिय' नाम पधारे । १–आवश्यक चूणि, पूर्वाद्ध, पत्र ३२१
तेरहवाँ चातुर्मास
- जंभीय-गाम में कुछ समय रहने के बाद, भगवान् वहाँ से मेंढिय होते हुए छम्मारिण' गये और गाँव के बाहर ध्यान में स्थिर हो गये। रात के समय कोई गोपाल भगवान् के पास बैल रखकर गाँव में चला गया और जब वापस आया तो उसको वहाँ बैल नहीं मिले । उसने भगवान् से पूछा"देवार्य ! मेरे बैल कहाँ गये ?' भगवान् मौन रहे। तब उस ग्वाले ने क्रुद्ध होकर काँस-नामकी घास की शलाकाएँ भगवान् के दोनों कानों में घुसेड़ दी। उन शलाकाओं को पत्थर से ऐसा ठोका कि अंदर दोनों शलाकाएँ मिल गयीं। दोनों शलाकाओं के मिलने के बाद उसने बाहर की शलाकाएँ तोड़ दी, ताकि कोई उनको देख न सके ।
छम्माणि से भगवान् मध्यमा पावारे पधारे और भिक्षा के लिए घूमते हुए सिद्धार्थ नामक वणिक् के घर गये, सिद्धार्थ अपने मित्र खरक वैद्य से बातें कर रहा था। भगवान को देखकर वह उठा और उसने सादर वंदना की। १-मगध देश में था। बौद्ध-ग्रन्थों में इसका उल्लेख खानुमत नामसे हुआ है । ( वीर-विहार-मीमांसा, हिन्दी, पृष्ठ २८) २-इस पावा के सम्बंध में मैंने अपनी पुस्तक 'वैशाली' (हिन्दी, द्वितीय
आवृत्ति) के पृष्ठ ८५-८७ पर विस्तार के साथ विचार किया है । इसका आधुनिक नाम सठियांवडीह है ।
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