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(२४३) देह में आत्मा कौन है ?"
भगवान्– 'जो 'मैं' शब्द का वाच्यार्थ है, वही आत्मा है।"
स्वातिदत्त-'मैं' शब्द का वाचार्थ जिसे आप कहते हैं, वह क्या है ? मेरे संशय को दूर करें।"
महावीर-"शिर आदि सब से पूर्णतः भिन्न आत्मा सूक्ष्म है।" स्वातिदत्त- "सूक्ष्म क्या है ?" महावीर-"जिसे इंद्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकती हैं, उसे सूक्ष्म कहते हैं ?" स्वातिदत्त-"शब्द, गन्ध, अनिल वायु क्या हैं ?
महावीर—"ये नेत्र से देखे नहीं जाते हैं। लेकिन अन्य इन्द्रियों से इनकी उपलब्धि होती है । 'ग्रहण' शब्द 'इन्द्रिय' शब्द का दूसरा पर्याय है । इन्द्रिय को भी आत्मा नहीं कह सकते; क्योंकि वे ग्रहण करानेवाली हैं और आत्मा ग्रहण करने वाला होता है । इसलिए इन्द्रिय आत्मा नहीं है।"
स्वातिदत्त--"महाराज ! 'प्रदेशन' क्या है ?" ।
महावीब-'प्रदेशन' का अर्थ उपदेश होता है और वह दो प्रकार का है। धार्मिक प्रदेशन और अधार्मिक प्रदेशन !"
स्वातिदत्त- 'महाराज ! 'प्रत्याख्यान' किसे कहते हैं ?"
महावोर-"प्रत्याख्यान का अर्थ है 'निषेध' । प्रत्याख्यान भी दो प्रकार का होता है। मूलगुण प्रत्याख्यान और उत्तरगुण प्रत्याख्यान । आत्मा के दया, सत्यवादिता आदि मूल स्वाभाविक गुणों की रक्षा तथा हिंसा, असत्यभाषण आदि वैभाविक प्रवृत्तियों के त्याग को मूलगुण प्रत्याख्यान कहते हैं । और, मुलगुणों के सहायक सदाचार के विरुद्ध आचरणों के त्याग का नाम हैउत्तरगुण प्रत्याख्यान।
इस वार्तालाप से स्वातिदत्त को विश्वास हो गया कि भगवान महावीर केवल तपस्वी ही नहीं बल्कि महाज्ञानी भी है।
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