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(२८८) कि उसका रूप होता है । रूपितया जात ही घट उत्पन्न होता है; क्योंकि 'मद-रूपिता तो वह पहले से विद्यमान है। 'अजात कुम्भ' इसलिए उत्पन्न होता है कि पहले से उसका वह संथान (आकार-विशेष) नहीं रहता है । और, मृद्रूप तथा आकार विशेष से जाताजात उत्पन्न होता है। जायमान इस कारण से कि वर्तमान में उसके जायमान होने की क्रिया प्रस्तुत है । पर, जो 'कुम्भ' पहले बन चुका है, वह 'घटता' के कारण ‘पट' पर्याय (पटादि रूप) के कारण और उन दोनों से पुनः उत्पन्न नहीं किया जा सकता । और, जो जायमान कुम्भ है वह पटता के कारण जायमान भी नहीं होता। इसी प्रकार आकाश नहीं पैदा किया जा सकता; क्योंकि वह नित्य 'जात' है। इसलिए, हे सौम्य ! कोई वस्तु द्रव्य के रूप में नहीं उत्पन्न होती। हर वस्तु पर्याय-चिन्ता से जात अजात; जाताजात और जायमान मानी जाती है। .. "सब वस्तुएँ सामग्रीमय दीखती हैं। पर, जब सब शून्य ही है तो सामग्री का प्रश्न कहाँ उठता है । तुम्हारा यह कहना विरुद्ध है। अविद्या के वश से हम अविद्यमान को देखते हैं, यह भी नहीं कहा जा सकता। यदि अविद्यमान को देखने की बात होती, तब तो कछुए की रोम की सामग्री भी देखी जानी चाहिए थी।
"यदि वक्ता सामग्रीमय है और उसका वचन है, तो शून्यता कहाँ रह जाती है। और, यदि उनका अस्तित्व नहीं है तो फिर बोलता कौन है और सुनता कौन है ? __ "(विरोधी कह सकता है) "जैसे वक्ता और वाणी नहीं हैं, तो उसी प्रकार वचनीय (जिन वस्तुओं की हम चर्चा करते हैं) भी नहीं हैं।" यह सत्य है अथवा असत्य ? यदि सत्य है तो अभाव की स्थिति नहीं रहेगी और यदि असत्य है तो फिर तुम्हारा वचन अप्रमाण होता है। और, सर्वशून्यता की स्थिति की सिद्धि नहीं होगी।
"जैसे-तैसे शून्यता प्रतिपादक वचन को स्वीकार करता हूं, अतः हमारे . वचन के प्रामाण्य से शून्यता की सिद्धि होगी, यह तुम्हारा मानना ठीक नहीं
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