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(३५६) . व्यवहार भाष्य में रुद्र, आउम्बर, यक्ष तथा माई के आयतन का उल्लेख है। यह मंदिर मृतक व्यक्तियों के शवों पर बना था (व्यवहार-भाष्य ७३१३)। आवश्यक चूरिण में उल्लेख मिलता है कि रुद्र की मूर्ति काष्ठ की बनती थी। (आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध पत्र ११५ )
। मुकुन्द-मह जैन-ग्रंथों में मुकुंद-पूजा का भी उल्लेख हैं। भगवान महावीर के समय में श्रावस्ती और आलंभिया के निकट मुकुन्द और वासुदेव की पूजा का उल्लेख मिलता है । बलदेव की मूर्ति के साथ हल (नांगल) भी रहा करता था। (आवश्यक चूणि,, पूर्वार्द्ध, पत्र २६३)। मर्दन ग्राम में बलदेव की मूर्ति का उल्लेख मिलता है (आवश्यक चूर्णि, पूर्वार्द्ध, पत्र २६४) (कल्पसूत्र सुबोधटीका पत्र ३०३) कुंडाक-सन्निवेश में वासुदेव के मंदिर का उल्लेख मिलता है। (आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध, पत्र २६३) ।
शिवमह स्कंद और मुकुन्द के समान ही शिव की भी पूजा भगवान महावीर के समय में प्रचलित थी । आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध, (पत्र ३१२) में एक शिवमूर्ति का उल्लेख मिलता है । पत्तियों, फूलों, गुग्गुल और गड़ ए के जल से उनकी पूजा होती थी। ( बृहत् कल्पसूत्र सटीक, भाग १, पृ. २५३ की पादटिप्परिण) आवश्यक चूणि (पत्र ३१२) तथा बृहत्कल्पसूत्र (पंचम विभाग, श्लोक ५६ २८, पृष्ठ १५६३) में ढूंढ शिव की पूजा का उल्लेख है ।
वेसमण-मह वैश्रमण' कुबेर को कहते हैं। इसकी पूजा भी भगवान महावीर के १-(अ) वैश्रमण रत्नकर कुबेर-अभिधान चिंतामणि, देवकांड, श्लोक १०३,
पृष्ठ ७७ --(आ) अमरकोश, प्रथम कांड, श्लोक ६८-६६ । (व्यंकटेश्वर प्रेस, बम्बई)
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