Book Title: Tirthankar Mahavira Part 1
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 424
________________ (३६१) रँगता था, वह यक्ष उसे मार डालता था । ' सिद्ध-पुरुषों की सेवा के प्रसंग में यहाँ यह भी कह देना आवश्यक है कि हर तीर्थंकर के यक्ष-यक्षिणी होते हैं |२ भूतमह भूत निशाचर होते थे । आवश्यक चूरिंग ( द्वितीय खंड, पत्र १६२) में उनको बलि दिये जाने का उल्लेख है । भूतों की भी गणना वारणमंतर देवों के रूप में की गयी है (उत्तराध्ययन ३६, २०५ ) इन्द्रमह, यक्षमह आदि के समान ही भूतमह भी प्राचीन काल का एक विशिष्ट पर्व था । भूतों से कुछ निम्न कोटि के पिशाच-नाम से प्रसिद्ध होते थे । उनके सम्बन्ध में उल्लेख है कि वे रक्त पीते थे और मांस खाते थे । अज्जा - कोट्टकिरिया अज्जा और कोटकिरिया देवियाँ थीं । आचारांग चूणि में (पत्र ६१ ) में चंडिका देवी की उपासना का उल्खेख है । शांतिमयी दुर्गा के लिए अज्जा ( आर्या) शब्द का प्रयोग मिलता है और वही जब महिषा पर सवार होती थी तो उसे कोट्टकिरिया कहते थे । 'निशीथ' में वर्णित कुछ देवी-देवता निशीथसूत्र सभाष्य चूर्णि में आगे दिये देवी-देवताओं के उल्लेख आये हैं: १ - आवश्यकचूरिण, पूर्वार्द्ध, पत्र ५६७ । २ - कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ६२३, ६२४ ॥ y ३ - देवतानाम् उपहारे ज्ञा० १, श्रु० ६ अ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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