Book Title: Tirthankar Mahavira Part 1
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 434
________________ (३७१) जिसमें स्तूप था। फाहयान ने उसे अनोमा नदी से ४ योजन पूर्व बताया है और कुशीनारा से उसे १२ योजन दूर पश्चिम बताया है।" __ डाक्टर कनिंघम ने 'द' ऐंशेंट ज्यागरैफी आव इंडिया' द्वितीय वृत्ति (पृष्ठ ४९१) में लिखा है- "इस नाम का कोई स्थान अब ज्ञात नहीं है। पर, वेनसांग द्वारा बताये दक्षिण-पूर्व दिशा में एक वन है, जिसमें प्राचीन अवशेष भरे पड़े हैं । उसका नाम सहनकट है । उक्त स्थान की चर्चा बुचानन ने (एशियाटिक रिसर्चेज, बंगाल xx) में विस्तार से की है। उन्हें खंडहरों में बुद्ध की कई मूर्तियाँ मिली थीं।...यह स्थान अउमी-नदी पर स्थित चंदोली-घाट से सीधे २० मील की दूरी पर है; लेकिन सड़क से इसकी दूरी २५ मील से कम न होगी। रास्ते में बहुत से नाले हैं। अतः यह स्थान ह्वान च्वांग द्वारा वरिणत स्तूप से बहुत मिलता-जुलता है। पर, इस पर मैं पूर्णरूपेण सहमति नहीं प्रकट कर सकता, जब तक श्रीनगर कोलुआ शब्द के 'कोलुआ' का कोइला से सम्बन्ध न जोड़ा जाये-जिसकी सम्भावना बहुत । कम है। ___ संयुक्तनिकाय (हिन्दी-अनुवाद) में प्रकाशित 'बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय' में (पृष्ठ ८) पिप्पलीवन के सम्बन्ध में लिखा है- “वर्तमान समय में इसके नष्टावशेष जिला गोरखपुर के कुसुम्ही स्टेशन से ११ मील दक्षिए उपधौली नामक स्थान में प्राप्त हुए हैं।" डाक्टर जगदीशचन्द्र जैन ने 'लाइफ इन ऐंशेंट इण्डिया' (पृष्ठ ३१५) में 'मोरियस निवेश' को मगध में बताया है । पर, यह उनकी भूल है। 'कैम्बिज हिस्ट्री आव इण्डिया', वाल्यूम १, पृष्ठ १७५ पर मोरिय-राज्य को कोसल से पूर्व और गंगा तथा हिमालय के बीच में बताया गया है। मगध की सीमा तो गंगा के दक्षिण में थी, अतः मोरियसनिवेश मगध में तो हो ही नहीं सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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