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(३६०) __-दु:ख करके जो आचरण करे तथा ब्रह्मचर्य पालन करे, उस ब्रह्मचारी मुनि को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस तथा किन्नर नमस्कार करते हैं। - यक्षों के बहुत-से गुण जैन-ग्रन्थों में वर्णित हैं। उसके बहुत-से कल्याणकारी रूप भी जैन-ग्रन्थों में आते हैं। ____ गंडीतिडुग नाम का यक्ष काशी में रहता था। उसने तिंडुग-उद्यान में मातंग की रक्षा की थी। और, विभेलग नामक यक्ष ने भगवान महावीर की वंदना की थी। ___रक्षण-कार्य के अतिरिक्त उसके निम्नलिखित रूप भी जैन-ग्रन्थों में आये हैं :
१ पुत्रदाता, २ रोग-नाशक, ३ बलदायक ।" इन शुभ गुणों के साथ-साथ यक्ष कष्टद भी बताये गये हैं ।
वे जिस गाँव अथवा जिस व्यक्ति पर क्रुद्ध होते थे, उन्हें मार डालते थे। शूलपाणि-यक्ष के मंदिर में जो रात को रहता था, वह मर जाता था।
ऐसी ही कथा है कि वार्षिक उत्सव के अवसर पर जो यक्ष की मूर्ति
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१-उत्तराध्ययन, नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन १२, पत्र १७४-१। २-आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध, पत्र २७२ । .
कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र ३०३ । ३-विपाकसूत्र, ७, पृष्ठ ५१, (पी० एल० वैद्य-सम्पादित)
ज्ञातधर्मकथा २, पृष्ठ ८४-१, ८५-२ (सटीक) ४-पिंडनियुक्ति २४५ । ५-अंतगडदसाओ ६। ६-आवश्यकचूरिण, पूर्वार्द्ध, पत्र २७२ ।
कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र २६३ ।
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