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(३५५) वाससयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिंदे अयरंबरवत्थधरे आलइयमालमउडे नवहेमचारुचित्तचंचलकुण्डलविलिहिच्चमाणगंडे महिड्ढ़िए जाव पसभासेमाणे से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसगाणं चाडण्हं लोगपालाणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीरणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं अणीयाणं सत्तण्हं अणीयाहिवईणं चउण्हं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अत्रेसि च बहूणं सोहम्मकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं कुव्वेभाणे जाव विहरइ।
इनके अतिरिक्त इंद्र का तद्रूप वर्णन 'श्रीमज्जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' नामकउपांग टीका-सहित में पत्र ३६५।१-२ में तथा जीवाजीवाभिगमोपांग (सटीक) के पत्र ३८६-१ में भी आया है ।
स्कन्दमह
स्कन्द शिव के लड़के थे। उसके संबन्ध में यह पर्व भगवान महावीर के काल में भी मनाया जाता था। जब वे श्रावस्ती में पहुंचे थे, तो स्कन्द का जुलूस निकाला जा रहा था।
___-आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध, पत्र ३१५ बुहत्कल्पसूत्र (खंड ४, पृष्ठ ६६७ गाथा ३४६५) में भी स्कंद की मूर्ति का उल्लेख है, जिसके सम्मुख रात्रि में दीप जलता रहता था। यह मूर्तिकाष्ठ की बनती थी। (आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध पत्र ११५)। कल्पसूत्र सुबोधिका टीका ( पत्र ३०८) में भी स्कन्द-पूजा का उल्लेख मिलता है।
रुद्रमह रुद्रघर (रुद्रदेव का मंदिर) की चर्चा जैन-ग्रन्थों में मिलती है। रुद्र को महादेवता कहा गया है । रुद्रघर में रुद्र के साथ-साथ माई (चामुण्डा), आदित्या तथा दुर्गा की मूर्तियाँ होती थी। (निशीथ चूरिण, पत्र २३६) ।
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