Book Title: Tirthankar Mahavira Part 1
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 417
________________ (३५४) (महब्बले ) महाबली, (महायसे ) महान यश वाले, ( महाषुभावे ) महान् महिमा वाले, (महासुक्खे) महान सुख वाले, ( भासुर ) देदीप्यमान शरीर वाले, (पलंबवणमालधरे) लम्बायमान पंचवर्ण पुष्पमाला धारण करने वाले बताये गये हैं। वे इन्द्र सौधर्म-नामक देवलोक में, सौधर्मावतंसक नामक विमान में सुधर्मा नामक राजसभा में, सक्र नाम सिंहासन पर बैठते हैं । उनके यहाँ (से णं बत्तीसाए विमाणावाससयसाहस्सीणं ) बत्तीस लाख वैमानिक देव हैं, ४८ हजार सामानिक देव हैं ( जो ऋद्धि में इंद्र के समान हों, उन देवताओं को सामानिक देव कहते हैं ), ३३ त्रायस्त्रिशक देव हैं (जो देवता इन्द्र के भी पूज्य है, उन्हें त्रायस्त्रिश देवता कहते हैं ), चार लोकपाल हैं (सोम, यम, वरुण और कुवेर), आठ राजमहिषियाँ हैं (पद्मा, शिवा, शची, अंजू, अमला, अप्सरा, नवमिका और रोहिणी), और उनके परिवार के (एक-एक इन्द्राणी के १६ हजार देव-सेवक हैं ) १ लाख २८ हजार देवसेवक हैं। उनकी तीन पर्षदाएँ है (वाह्य, मध्यम और अभ्यंतर)। उनके सात अनीक (सेना) हैं (हाथी, घोड़ा, रथ, पैदल, वृषभ, नाटक, और गंधर्व)। उन सात अनीकों के सात स्वामी हैं। एक दिशा में ८४ हजार, अंगरक्षक इन्द्र की सेवा में शस्त्र-सहित तत्पर रहते हैं (इस प्रकार कुल ३ लाख ३६ हजार अंगरक्षक है)। वे सब नित्य इन्द्र की सेवा करते हैं। सौधर्म लोक में जो अन्य देव-देवियाँ हैं, इन्द्र उन सब की रक्षा करते हैं, पुरोवर्तित्व करते हैं, अग्रगामित्व करते हैं, स्वामित्व करते हैं, पोषण करते हैं, प्रमुखत्व करते हैं, और सेनापतित्व करते हैं तथा पालन करते हैं। उनके यहाँ नाटक, तन्त्री, वीणा, वादित्र, ताल, तूर्य, शंख, मृदंग आदि का मेघ के गर्जन के समान कर्ण-प्रिय स्वर गुंजरित होता रहता है। वे दैवी भोगों के योग्य भोग भोग रहे हैं। ___इन्द्र का ठीक इसी प्रकार का उल्लेख प्रज्ञापना-सूत्र (पत्र १०१।१) सूत्र ५२ में भी आया है। सक्के इत्थ देविंदे देवराया परिवसइ वज्जपाणी, पुरंदरे सयक्कतू सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिएड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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