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(३३३) (३) किरिअं अकिरिअं विणयं अण्णाणं च महामुणी !
एएहिं चाहिं ठाणेहि मे अण्णे किं पभासति ? -उत्तराध्ययन सूत्र नेमिचन्द्र की टीका सहित, अध्ययन १८, गाथा २३,
पत्र २३०-१।
(१) किरियावाद (२) अकिरियावाद (३) अज्ञानवाद और विनयवाद की शाखा-प्रशाखाओं का भी विस्तृत उल्लेख जैन-शास्त्रों में किया गया है ।
समवायांग सूत्र में इन वादों का उल्लेख करते हुए लिखा है :
असीअस्स किरियावाइयसयस्स, चउरासीए अकिरियवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं, तिण्हं तेवट्ठीणं अण्णदिट्ठियसयाणं वूहं ।'
इसी प्रकार का उल्लेख नन्दीसूत्र में भी है :
असीअस्स किरियावाइसयस्स, चउरासीइए अकिरिआवाईणं, सत्तट्ठीए अण्णाणिअवाईणं, बत्तीसाए वेणइअवाईणं, तिण्हं तेसट्ठाणं पासंडिअसयाणं...२
सूत्रकृतांग-नियुक्ति में भी उनके विभेद इसी प्रकार बताये गये हैं :असीयसयं किरियाणं १८०, अकिरियाणं च होइ चुलसीती ८४।
अन्नाणिय सत्तट्ठी ६७, वेणइयाणं च बत्तीसा ३२॥ १-समवायांग सूत्र सटिक, सूत्र १३७, पत्र १०२-१। । २-नन्दीसूत्र (आगमोदय समिति) पत्र २१२-२ तथा २१३-१ । ३-सूत्रकृतांग सटीक भाग १ (गौड़ी पार्श्व जैन ग्रंथमाला बम्बई) पत्र २१२-२
सूयगडं (पी० एल० वैद्य-सम्पादित) सूत्रकृतांग नियुक्ति, पृष्ठ १४५ । यह गाथा प्रवचन सारोद्धार (उत्तर भाग) पत्र ३४४-१ में भी है । इस गाथा को हरिभद्र ने आवश्यक नियुक्ति की टीका में पत्र ८१६-२ तथा ठाणांग की टीका में अभयदेव सूरि ने पत्र २६८-२ पर उद्धृत किया है।
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