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(३४८) वा अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु असरणं वा पाणं वा खाइयं बा पडिग्गाहेति पडिग्गाहेंतं वा सातिज्जति ॥
-निशीथचूणि सभाष्य सचूणि, विभाग २, पृष्ठ ४४३ । इसके अतिरिक्त उसी ग्रंथ में कुछ अन्य उत्सवों के भी नाम मिलते हैं:
१ अट्ठहिमहिम, २ कौमुदी,२ ३ तलाग जण्णग, ४ देवउलजण्णग, ५ लेपग,५ ६ विवाह, ७ सक्क, ।
१ इन्द्रमह आषाढ़ पूर्णिमा को २ स्कन्दमह आसोज पूर्णिमा को ३ यक्षमह कार्तिक पूर्णिमा को ४ भूतमह चैत्रपूर्णिमा को मनाया जाता था।
ज्ञाता धर्मकथा (सूत्र २४, पत्र ४३-१) में निम्नलिखित उत्सवों के वर्णन हैं :
"......अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहेति वा खंदमहेति वा एवं रुद्दसिववेसमण नाग जक्ख भय नई तलाय रुक्ख चेतियपव्वयउज्जाणगिरिजत्ताइ वा जओ णं वा बहवे उग्गा भोगा जाव एगदिसि एगाभिमुहा रिणग्गच्छंति,....."
इन्द्रोत्सव, स्कन्दोत्सव रुद्रोत्सव, शिवोत्सव, यक्षराट-उत्सव, नाग-भवनपति देव विशेष उसका उत्सव, यक्षोत्सव, भूतोत्सव, नदी-उत्सव, तालावउत्सव, वृक्ष-उत्सव, चैत्योत्सव, पर्वतोत्सव उद्यान-यात्रा और गिरियात्रा का उल्लेख है।
अब हम इन पर पृथक्-पृथक् रूप में विचार करेंगे।
१--निशीथ सूत्र सभाष्य सचूणि, ३, १४१ । २-वही ४, ३०६ । ३-वही २, १४३ । ४-वही २, १४३ । ५-वही ३, १४५। ६-वही १, १७; २, ३६६ । ७-वही २, २४१ ।
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