________________
(३३७) विनयवादी-“विनयेन चरन्तीनि वैनयिकः" विनयपूर्वक जो चले, वह विनयवादी होता है। तन विनयवादियों का लिंग (वेश) और शास्त्र नहीं होता। वे केवल मोक्ष मानते हैं। इनके ३२ भेद कहे गये हैं। १ सुर, २ राजा, ३ यति, ४ ज्ञाति, ५ स्थविर, ६ अधम, ७ माता, ८ पिता-इन आठों की १ मन से, २ वचन से, ३ काया से और ४ देश-काल-उचित दान देने से विनय करे । इस ८ और ४ के गुणा करने से ३२ होता है।'
आचारांग में भी चार वादों का उल्लेख है:से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी।
-आचारांग सूत्र, सटीक श्रु०१, अ०१, उ०१, पत्र २०-१ १-सुर १ निवइ २ जइ ३ नाई ४ थविरा ५ वम ६ माइ ७ पिइसु
८ एएसि । [ मरण १ वयण २ काय ३ दाणेहिं ४ चउन्विहो किरए विणओ॥५॥ अट्ठवि चउक्कगुणिया बत्तीस हवंति वेणइयभेया। सव्वेहि पिडिएहिं तिन्नि सया हुंति तेसट्ठा ॥६॥
-प्रवचन सारोद्धार सटीक, उत्तरार्द्ध, पत्र ३४४-२ । ऐसा ही स्थानांग सूत्र सटीक पूर्वार्द्ध पत्र २६६-२ आदि स्थलों पर भी है।
(पृष्ठ ३३६ की पादटिप्परिण का शेषांश) एवमसंती भावुप्पत्ती सदसत्तिया चेव ॥३॥ तह अव्वत्तब्वावि हु भावुप्पत्ती इमेंहिं मिलिएहिं । भंगाण सत्तसट्ठी जाया आन्नारिणयाण इमा ॥४॥
-प्रवच सारोद्धार सटीक उत्तरार्द्ध, पत्र ३४४-२ । ऐसी ही व्याख्या स्थानांग सूत्र सटीक पूर्वार्द्ध, पत्र २६८-२ आदि स्थलों पर भी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org