Book Title: Tirthankar Mahavira Part 1
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 403
________________ (380) 3 'संपक्खाल' त्ति मृत्तिकादिघर्षणपूर्वकं येऽङ्गं क्षालयन्ति 'दक्खिणकूलग' त्ति यैर्गङ्गाया दक्षिणकूल एव वस्तव्यम् ' उत्तरकूलग' त्ति उक्तविपरीताः 'संखधमग' त्ति शंखध्मात्वा ये जेमन्ति यद्यन्यः कोऽपि नागच्छतीति, व कुलधमग' त्ति ये कूले स्थित्वा शब्दं कृत्वा भुञ्जते 'मियलुद्धय'त्ति प्रतीता एव, 'हात्थितावसति ये हस्तिनः मारयित्वा तेनैव बहुकालं भोजनतो यापयन्ति, 'उड्डडग' त्ति उद्धकृतदण्डा ये सञ्चरन्ति, 'दिसापोक्खिणो'त्ति उदकेन दिशः प्रोक्ष्य ये फलपुष्पादि समुच्चिन्वन्ति, 'वाकवासिणोत्ति वल्कलवाससः, 'चलवासिणो'त्ति व्यक्तं पाठान्तरे ' वेलवासिणोत्ति समुद्रवेलासन्निधिवासिनः 'जलवासिणो' त्ति ये जलनिमग्ना एवासते, शेषाः प्रतीताः, नवरं ' जलाभिसेयकढिणगाया' इति ये अस्नात्वा न भुञ्जते स्नानाद्वा पाण्डुरीभूतगात्रा इति वृद्धाः पाठन्तरे जलाभिषेककठिनं गात्रं भूताः - प्राप्ताः ये ते यथा, 'इंगाल सोल्लिय'त्ति अंगारैरिव पक्वं, 'कंडुसोल्लियं त्ति कन्दुपक्वंभिवेति... ' इस प्रसंग में निम्नलिखित तापस गिनाये गये है १ होत्तिय - अग्निहोत्र करनेवाले २ पोतिय-वस्त्रधारी तापस ३ कोत्तिय - भूमि पर सोनेवाले ४ जण्णई-यज्ञयाजिन ५ सडई - श्राद्धिक तापस ६ सालई - अपना सामान साथ लेकर घूमनेवाले 1 ७ हुंपडट्ठा -- कुण्डिक सदा साथ में लेकर भ्रमण करनेवाले म दंतुक्खलिया - फलभोजी ९ उम्मज्जका — उन्मज्जन मात्र से स्नान करनेवाले १० सम्मज्जका — कई बार गोता लगाकर सम्यक् रूप से स्नान करनेवाले, ११ निम्मज्जका - क्षण मात्र में स्नान कर लेने वाले १२ संपक्खला - मिट्टी घिस कर शरीर साफ करने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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