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(२६८)
आदि सादृश्य मानने से गलत सिद्ध हो जायेंगे । "
जब तीर्थंकर ने सुधर्मा की शंकाओं का समाधान कर दिया तो अपने ५०० शिष्यों के साथ उन्होंने दीक्षा ले ली ।
१--इसकी टीका करते हुए टीकाकार ने लिखा है- " पुरुषो वै पुरुषत्व मश्नुते" इत्यादि वेदवाक्य का यह अर्थ है कि कोई पुरुष इस जन्म में स्वभावतः भद्रक विनीत दयालु अमत्सर होता हुआ, मनुष्य नाम गोत्र कर्म को बाँधकर मरने पर पुरुषत्व को प्राप्त करता है, न कि सब के सब !
( ६ ) माण्डिक
यह सुनकर कि पहले गये लोगों ने दीक्षा ले ली, भगवान् का बंदन करने के विचार से माण्डिक उनके पास गये । भगवान् ने उन्हें देखते ही उनका और उनके गोत्र का नाम लेकर उन्हें सम्बोधित किया और कहा - "तुम्हें बन्ध और मोक्ष के सम्बन्धमें शंका है। तुम वेदमंत्रों का सही अर्थ नहीं जानते ।
१
"तुम्हारा विश्वास है कि जीव का बन्ध कर्म के साथ संयोग है । तो, वह संयोग आदिमान है अथवा आदिरहित है ? यदि आदिमान है, तो
१ - टीकाकार ने यहाँ दो मन्त्रों का उल्लेख किया है :
( अ ) स एष विगुणो विभुर्व बध्यते संसरति वा, न मुच्यते मोचयति वा, न वा एष बाह्यमभ्मंतरं वा वेदः"
( आ ) " न ह वै सशरीरस्य प्रियाऽप्रिययोर पहतिरस्ति, अशरीरं वा वसन्तं प्रिया-प्रिये न स्पृशतः "
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