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( १० ) मेतार्य
अपने पहले गये लोगों के दीक्षा लेने की बात सुनकर, मेतार्य भगवान् के पास वंदना करने के विचार से गये । उन्हें देखते ही भगवान् ने उनका नाम और गोत्र उच्चारित करके उन्हें सम्बोधित किया और कहा - "तुम्हें शंका है कि परलोक है या नहीं । तुमने विरुद्ध - वेदों' को सुना है । इसीलिए तुम्हें शंका है।
"यदि तुम मानते हो कि जैसे मद्यांग में मद्य का भूतधर्म में चैतन्यता है । इससे तुम्हारा मत है कि चैतन्य भी नष्ट हो जायेगा और इस प्रकार परलोक न होगा |
"यदि इसके भिन्न भी हो ( यदि चैतन्य को भूतों से भिन्न भी माना जाये) तो उस अवस्था में भी ( चैतन्य में) नित्यत्व नहीं होगा । अरणी से भिन्न विनाशधर्म वाली अग्नि की तरह |
"यदि (जीव ) एक, सर्वगत और निष्क्रिय हो, तो भी नहीं होगा। क्योंकि, सर्व पिण्डों में संसरण के अभाव में समान होगा ।
अंश है, उसी प्रकार भूतों के नष्ट होने पर
टीकाकार ने यहाँ दो यंत्र दिये हैं।
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" इस लोक से भिन्न यदि सुर-नारकादि के रहने के लिए परलोक हैं, ऐसा माने तो भी अप्रत्यक्ष होने से वह सिद्ध नहीं होगा । पर, श्रुतियों में उसके बारे में सुना जाता है, अतः शंका उत्पन्न होती है ।
१ - विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्य.... २ - तेषांचायें ना जानासि ....
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परलोक सिद्ध यह व्योम के
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