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(२६३) "जो जीवधात अशुभ परिणाम का कारण है, अथवा अशुभ परिणाम जिसका कारण है, वह जीवघात हिंसा है। ऐसा तीर्थकर और गणधर मानते हैं। जिस जीवघात का निमित्त अशुभ-परिणाम नहीं है, ऐसे जीव बध करने वाले साधु को हिंसा नहीं होती।
"भावशुद्धि होने से वीतराग साधु के शब्दादि अनुराग उत्पन्न नहीं करते; क्योंकि उसका भाव शुद्ध है। वैसे ही संयमी का जीववध भी हिंसा नहीं है; क्योंकि उसका मन शुद्ध है।"
जब व्यक्त की शंकाओं का समाधान हो गया तो उन्होंने भी अपने ५०० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली।
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