________________
(२८६) है; क्योंकि स्वीकार करनेवाले, स्वीकार्य और स्वीकारणीय इन तीनों की सत्ता सिद्ध होने पर ही यह स्वीकृति भी सिद्ध हो सकेगी। ___"बालू से तेल क्यों नहीं निकलता ? तिल में भी तेल क्यों है ? और, सभी वस्तुएँ खपुष्प की सामग्री से क्यों नहीं बनती ? ___"सब वस्तु सामग्रीमय है-यह निश्चय नहीं है; क्योंकि 'अणु' 'अप्रदेश' है-स्थान ग्रहण नहीं करता। तुम्हारे कथनानुसार यदि उसे 'सप्रदेश' (स्थान ग्रहण करनेवाला) मानें, तो तुम्हारी बुद्धि से जहाँ कहीं निष्प्रदेशतया उसको स्थिति होती है, वह ‘परमाणु' है और वह 'परमाणु' सामप्रीरहित है।
"यह बात परस्पर-विरोधी है कि सामग्रीमय वस्तु का दृश्य है और अणु नहीं होते या बात यह है कि अणु के अभाव में वह वस्तु खपुष्प से निर्मित होती है ? ___"दृश्य पदार्थ का निकटवर्ती भाग गृहीत होता है, पर अन्य पर भाग की कल्पना से 'नहीं है' ऐसा आपका कहना ठीक नहीं। यह बात विरुद्ध है। क्योंकि, सर्वाभाव के तुल्य होने पर, गधे की सींग का निकट का भाग क्यों नहीं दिखायी देता।
"परभाग का दर्शन नहीं होने से अग्रभाग भी नहीं है, यह आपका अनुमान कैसा है ? या बात ऐसी है कि अग्रभाग के ग्रहण करने पर परभाग की सिद्धि क्यों नहीं होगी ?
"यदि सर्वाभाव ही है, तो निकट का, पर का, मध्यभाग का, अस्तित्व कैसे, सिद्ध होगा? और, दूसरों के विचार से ऐसा हो, तो अपने और दूसरों के विचार का अंतर कहाँ है ? यदि सामने के, मध्य के और पृष्ठ के भाग की अवस्थिति स्वीकार कर लें, तो शून्यता कहाँ ठहर पाती है। और, यदि न स्वीकार करें, तो खर की सींग की कल्पना क्यों नहीं होती ? और, सब वस्तुओं के अभाव की स्थिति में सामने का भाग क्यों दिखायी देता है ? और, पीछे का भाग क्यों नहीं दिखायी देता? और, इसका विपर्यय क्यों नहीं होता?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org