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(२५६) फिर प्रभु को वंदन करके लौटते हुए कुछ लोगों को देखकर इन्द्रभूति ने उनसे पूछा- "क्यों, तुम लोगों ने उस सर्वज्ञ को देखा ? कैसा है सर्वज्ञ ? वह कैसा रूपवान है ? उसका स्वरूप कैसा है ?"
इन्द्रभूति के इस प्रश्न को सुनकर, लोग भगवान महावीर के गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते । उनकी इतनी प्रशंसा सुनकर, इन्द्रभूति को विचार हुआ कि "नया सर्वज्ञ कोई कपटमूर्ति है। नहीं तो, इतने लोग भ्रम में कैसे
आ जाते । मैं इसको सहन नहीं कर सकता। मैंने बड़े-बड़े वादियों की वोली बंद कर दी है, फिर यह कौन-सी चीज होंगे। मेरे भय से कितने ही पंडित मातृभूमि छोड़कर भाग गये तो मेरे सम्मुख सर्वज्ञपन के मान को धारण करने वाला यह कौन-सा व्यक्ति है।" ___इन विचारों से प्रेरित होकर, मस्तक पर द्वादश तिलक धारण करके, सुवर्ण के यज्ञोपवीत से विभूषित हो, पीत वस्र पहन कर, हाथ में पुस्तक धारण करने वाले बहुत से शिष्यों को साथ लेकर, दर्भ के आसन, कमंडल आदि लेकर इन्द्रभूति वहाँ चले जहाँ भगवान महावीर थे।
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