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(२७६)
" जैसे हम बचपन की घटना वृद्धावस्था में अथवा स्वदेश की घटना को विदेश में स्मरण करते हैं, उसी तरह जातिस्मरण करनेवाला जीव पूर्व शरीर के नष्ट हो जाने पर भी नष्ट नहीं होता ।
'ज्ञानश्रृंखला के सामर्थ्य से क्षणिक जीव भी पूर्व वृतांत को स्मरण करता है । यदि ऐसा मानें तो भी यह सिद्ध हो जाता है कि, ज्ञान-संतान शरीर से भिन्न ही माना जायेगा ।
"ज्ञान सर्वथा क्षणिक नहीं है; क्योंकि वह पूर्व की बातें स्मरण कर सकता है । सर्वथा क्षणिक अतीत का स्मरण नहीं कर सकता । जन्म लेते ही विनष्ट हो जाने वाले के लिए पूर्व क्या ?
"वादी (बौद्ध) के 'एक विज्ञान संततयः सत्वा' वचन से उसका 'सर्वमपि वस्तु क्षणिकं' ऐसा विज्ञान कभी युक्त नहीं हो सकता और उसका इष्ट तो 'यत् सत् तत् सर्व क्षणिकं' 'क्षाणिकाः सर्व संस्काराः' इत्यादि वचनों से सर्वक्षणिकता विज्ञान ही है । यह सब बातें क्षणिकताग्राहक ज्ञान के एक मानने पर संगत नहीं हो सकती । एक प्रतिनियत कारण वाला, ज्ञान अशेष वस्तु में रहने वाली क्षणिकता को कैसे समझ सकता है । यदि उत्पत्ति के बाद ही उसका विनाश न माना जाता तो एक और एक निबन्धन विज्ञान सभी पदार्थों में क्षणिकता को बता सकता था ।
"ऐसा ज्ञान जो अपने तक ही सीमित है और जन्म के बाद ही नष्ट हो जाता है, वह सुबहुक विज्ञान और विषय के क्षय आदि को कैसे ग्रहण कर सकता है ।
" अपने विषय के विज्ञान से 'अयं अस्मद् विषयः क्षणिकः " " अहं च क्षण नश्वर रूपं' इस तरह अन्य विज्ञानों को भी विषय साध्य होने से क्षणिकता का ज्ञान कर सकता है । यह भी बात ठीक नहीं है; क्योंकि अनुमान तो सत्ता आदि की सिद्धि करता है । सर्वक्षणिकता वाला ज्ञान तो क्षणनश्वर होने से अपने को भी नहीं जानता । उसके लिए दूसरे का ज्ञान तो असम्भव ही है ।
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