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उस समय मध्यम पावापुरी में बड़ा विशाल धार्मिक आयोजन चल रहा था । आर्य सोमिल नामक ब्राह्मण यहाँ बड़ा भारी यज्ञ करा रहा था। इस यज्ञ में भाग लेने के लिए स्थान-स्थान से विद्वान वहाँ पहुँचे थे। धार्मिक उपदेश का सब से उत्तम अवसर जानकर, भगवान् रात भर में १२ योजन का विहार करके मध्यम पावापुरी पहुँचे और वहाँ ग्राम से बाहर महासेननामक' उद्यान में ठहरे।
उस यज्ञ में भाग लेने के लिए इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति ये तीनों भाई विद्वान आये थे । ये १४ विद्याओं में पारंगत थे। पर, इन्द्रभूति को जीव के सम्बन्ध में, अग्निभूति को कर्म के संबन्ध में और वायुभूति को वही जीव और वही शरीर के सम्बन्ध में शंका थी। उन तीनों में प्रत्येक के साथ पाँच-पाँच सौ शिष्य थे। इनका गोत्र गौतम था और ये तीनों मगध देश में स्थित गोबर गाँव के रहने वाले थे। (१) स्कंदः स्वामी महासेनः सेनानी: शिखिवाहनः ।
पाण्मातुरो ब्रह्मचारी गंगोमाकृत्तिका सुतः ।। द्वादशाक्षो महातेजाः कुमारः षण्मुखो गुहः । विशाखः शक्तिभृत क्रौञ्चतारिः शराग्निनभूः ।। अभिधान चिंतामणि, कांड २, श्लोक १२२-१२३, पृष्ठ ८८ । महासेन
स्कंद का नाम है। महावीर के काल में उनकी भी पूजा होती थी। (२) (अ) पुराण न्याय मीमांसा धर्मशास्त्राङ्गमिश्रिताः। वेदाः स्थानानि विद्यानांधमस्य च चतुर्दश ।
–याज्ञवलक्य स्मृति, अ० १, श्लोक ३, पृष्ठ २ (आ) अङ्गानिवेदाश्चत्वारोमीमांसा न्याय विस्तरः।
धर्मशास्त्रं पुराणञ्च विद्याह्य ताश्चुतुर्दश ॥ -विष्णुपुराण, अंश ३, अध्याय ६, श्लोक २८ (गोरखपुर), पृष्ठ २२२ (इ) षडंगमिश्रिता वेदा धर्मशास्त्रं पुराणकं ।
मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश ।। . -आप्टे की संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी, भाग २, पृष्ठ ६६४
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