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स्वयं ही तत्व को जानकर आत्मशुद्धि के द्वारा योगों को संयत करके कषायों से अतीत हुए, मायारहित हुए, भगवान् यावज्जीवन समितियों से समित थे ॥ १६॥
महान् मतिमान भगवान् महावीर ने (अप्रतिज्ञ) कामनारहित इस प्रकार आचरण का पालन अनेक प्रकार से किया। (मुमुक्षु साधु भी) इसी नियम का पालन करें।। १७ ॥ ऐसा मैं कहता हूँ।
आवश्यक-नियुक्ति में भगवान की तपश्चर्या का वर्णन इस रूप में है :जो अ तवो अणचिन्नो वीरवरेणं महाणुभावेणं । छउमत्थकालियाए अहक्कम कित्तइस्सामि ॥१॥ नव किर चउम्मासे छ विकर दो मासिए ओवासी। बारस य मासियाई बावत्तरि अद्धमासाई ॥२॥ इक्कं किर छम्मासं दो किर तेमासिए उवासीअ । अडूढाइज्जाइ दुवे दो चेवरदिवड्ढमासाई॥३॥ भदं च महाभई पडिमं तत्तो अ सव्वओ भई। दो चत्तारि दसेव य दिवसे ठासी यमणुबद्धं ॥ ४ ॥ गोअरमभिग्गहजुअं खमणं छम्मासिअंच कासी अ । पंच दिवसे हिं ऊणं अव्वहिओ वच्छनयरीए ॥ ५ ॥ दस दो किर महप्पा ठाइ, मुणी एगराइयं पडिमं । अट्ठमभत्तेण जई इक्किकं चरमराई अं॥६॥ दो चेव य च्छट्ठसए अउणातीसे उवासिओ भयवं । न कयाइ निच्चभत्तं चउत्थभत्तं च से आसि ॥७॥ बारस वासे अहिए छठं भत्तं जहन्नयं आसि । सव्वं च तवो कम्मं अपाणयं आसि वीरस्स ॥८॥
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