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कालान्तर में यह चन्दना भगवान् की प्रथम साध्वी हुई और निरतिचारचारित्रधर्म का पालन करके मोक्ष को गयी ।
कौशम्बी से सुमंगल, सुच्छेता, पालक आदि गामों में होते हुए, भगवान् चम्पा नगरी में पहुँचे और चातुर्मासिक तप करके वहीं स्वातिदत्त नामक ब्राह्मण की यज्ञशाला में बारहवाँ चौमासा किया ।
पूर्णभद्र और मणिभद्र नाम के दो यक्ष भगवान् की तपश्चर्या से आकृष्ट होकर रात को आकर आपकी सेवा करते रहे । यह देखकर स्वातिदत्त को विचार' हुआ कि क्या यह देवार्य इस बात को जानते हैं कि प्रत्येक रात को देव उनकी पूजा करते हैं । ऐसा विचार कर जिज्ञासु स्वातिदत्त, ब्राह्मण ने भगवान् के निकट जाकर उनसे पूछा - "शिर आदि सभी अंगों से युक्त इस
१ - - त्रिषिष्टशाला का पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ४, श्लोक ६१० पत्र६२-२
( पृष्ठ २४१ की पादटिप्परिण का शेषांश )
धूताओ - १ पभावती, २ पउमावती, ३ मिगावती, ४ सिवा ५, जेट्ठा, ६ सुजेट्ठा, ७ चेल्लण्णात्ति... १ प्रभावती वीतिभए उदायणस्स दिण्णा २ पउमावती चंपाए दहिवाहणस्स ३ मिगावती कोसंबीए सतारिणयस्स, ४ सिवा उज्जेणीए पज्जोतस्स ५ जेट्ठाकुंडग्गामे वद्धमारण सामिणो जेठ्ठस्स नंदिवद्धणस्स, ६ सुजेट्ठा चेल्लरणा य दो कण्णगाओ अच्छंति.......
इससे स्पष्ट है कि पद्मावती चम्पा के राजा दधिवाहन को व्याही थी । दधिवाहन ने किन्ही कारणों से बाद में धारिणी से विवाह किया। इस धारिणी की ही पुत्री चंदना थी । उसका नाम पहले वसुमति था 'बहन की लड़की' है का स्पष्टीकरण करते हुए हारिभद्रीय टीका की टिप्पणि ( पत्र २७-१ ) में कहा है —— "किल मृगापत्या भगिनी पद्मावती दहिवाहनेन परिगीता धारिणीच पद्मावत्याः, सपत्नीति कृत्वा धारिण्यपि मृगापत्या भगिन्येवेति 'भाव:', अर्थात् बहन की सौत होने से धारिणी भी बहन हुई ।
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