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, "अत्यंत बल करने से उस बैल को खून की कय हुई और वह वहीं गिर पड़ा। धनदेव को इससे बड़ा दुःख हुआ। गाँव के लोगों को उसकी सार-संभाल के लिए धन और चारा देकर और बैल की सुरक्षा का प्रबंध करवा कर वह व्यापारी चला गया। लेकिन, बाद में गाँव वालों ने उस बैल की खबर भी न ली और वह मर कर व्यन्तर-देव ( यक्ष भी ८ व्यंतर-देवों में एक है ) हुआ। अपने पूर्वभव का स्मरण करके, उसने गांव के लोगों पर भीषण उपद्रव करने शुरू किये। सारे ग्राम में 'बीमारी' फैल गयी। लोग कीड़ों की तरह मरने लगे और हड्डियों का ढेर लग गया, जिसके कारण लोग उस गाँव को ही अस्थिक-ग्राम कहने लगे। लोगों ने समझा कि यह किसी देव का उपद्रव है। अतः सब ने मिलकर देव की आराधना की । तब उसने प्रकट होकर कहा---'मैं वही बैल हूँ और मरकर शूलपाणि यक्ष' हुआ हूँ। मेरे स्वामी के दिये हुए धन से तुमने मे रीरक्षा नहीं की। तुम सब मिल कर उसे खा गये, इसलिए मैं तुम्हारे ऊपर रुष्ट हुआ हूँ। अतः, यदि तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो मेरा एक मन्दिर बनवा दो
और उसमें मेरी मूत्ति स्थापित करा दो। तब ग्राम में शान्ति स्थापित होगी।' ___“शूलपाणि (जिसके हाथ में त्रिशूल है) के इस आदेश पर हमने वहाँ मन्दिर बनवा दिया है और उसमें एक पुजारी रख दिया है।" यह कथा कह कर लोगों ने भगवान् से कहा कि रात्रि में यदि कोई पथिक इस मंदिर में ठहरता है, तो वह यक्ष उसको मार डालता है । अतः यहाँ रहना उचित नहीं है। ... इस कथा को सुनने के पश्चात् भी जब महावीर ने वहीं ठहरना चाहा तो निरुपाय होकर गाँववालों ने उन्हें अनुमति दे दी। शाम को जब पुजारी जाने लगा, तो उसने भी भगवान महावीर को सचेत किया कि यहाँ ठहरना ठीक नहीं है। लेकिन, भगवान् ने उसका कुछ जवाब नहीं दिया । और, मंदिर के एक कोने में ध्यान में स्थिर हो गये।
१-जिसके हाथ में शूल है। . .
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