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(१६.६)
ध्यान में रात्रि व्यतीत करने के पश्चात्, दूसरे दिन प्रातः भगवान् महावीर पत्तकालय ( पत्रकाल ) ' नामक गाँव में गये । भगवान् रात्रि में ध्यान में आरूढ़ हो गये । और, यहाँ भी गोशाला एक कोने में लुढ़क गया । रात्रि को ग्रामाधीश का स्कन्द नामक पुत्र दन्तिला नामक की दासी के साथ कामभोग की इच्छा से आया । दासी के साथ भोग भोग कर जब वह वापस लौट रहा था तो गोशाला ने दासी से छेड़छाड़ की। और, इस बार भी वह पीटा गया । पत्रकालय से भगवान् ने कुमाराक-सन्निवेश की ओर विहार किया । वहाँ चंपग - रमणीय ( चम्पक - रमणीय) नाम के स्थिर हो गये । उस सन्निवेश में कूपनय नाम का रहता था । उसकी शाला में अनेक शिष्यों के मुनिचन्द्राचार्य ठहरे हुए थे । अपनी पाट पर वर्द्धन स्थापित कर के वे जिनकल्पी हो गये थे ।
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उद्यान में कायोत्सर्ग में
एक धनाढ्य कुम्भकार साथ पार्श्वनाथ संतानीय नामक अपने शिष्य को
मध्याह्न होने पर गोशाला ने भगवान् से कहा- “भिक्षा का समय हो गया है । भिक्षा के लिए गाँव में चलिए ।" भगवान् ने उत्तर दिया- " आज मेरा उपवास है । भिक्षा के लिए नहीं जाना है ।"
गोशाला अकेले भिक्षा के लिए गाँव में गया । वहाँ उसने भगवान् 'पार्श्वनाथ के सन्तानीय साधुओं को देखा, जो विचित्र कपड़े पहने हुए थे
१ - वही, पत्र २८४ ।
२ - वही, पत्र २८५ ।
३ – वर्द्धन का नाम चूरिंग में नहीं है । केवल शिष्य लिखा है; परन्तु त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ३, श्लोक ४४८ पत्र ३४२-२ में उसका नाम वर्द्धन दिया है ।
४ – त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, श्लोक ४५२ पत्र ३४-२ । भगवान पार्श्वनाथ के साधु रंग-बिरंगे कपड़े पहनते थे । उत्तराध्ययन, अध्ययन २३, गाथा ३१ की टीका में वादीवेताल शान्त्याचार्य ने लिखा है"... वर्द्धमान विनेयानां हि रक्तादिवस्त्रानुज्ञाने वक्रजडत्वेन वस्त्ररञ्जनादिषु प्रवृत्तिरतिदुर्निवारैव स्यादिति न तन तदनुज्ञातं पार्श्वशिष्यास्तु न तथेति रक्तादीनामपि ( धर्मोपकरणत्वं ) उत्तराध्ययन सटीक, पत्र ५०३-२ ऐसा ही उल्लेख कल्पसूत्र सुवोधिका टीका, पत्र ३, में भी है ।
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