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(१९८) उन्होंने पहरेदारों को भगवान का परिचय कराया। परिचय पाकर पहरेदारों ने भगवान को मुक्त कर दिया और उनसे क्षमा याचना की। .. चोराक से भगवान् ने पृष्ठ चम्पा' की ओर विहार किया और चौथा चातुर्मास पृष्ठ चम्पा में ही व्यतीत किया। इस चातुर्मास में आपने लगातार चार महीनों तक उपवास किया और वीरासन लगंडासन आदि आसनों द्वारा ध्यान करके बिताया। चातुर्मास समाप्त होते ही नगर के बाहर पारना कर के भगवान ने कयंगला सन्निवेश की ओर विहार किया। १-आवश्यक चूणि, प्रथम भाग, पत्र २८७।। २-यह भी चम्पा के निकट ही स्थित था। ३–'लगंड' शब्द सूत्रकृतांग, द्वितीय श्रुतस्कंध, द्वितीय अध्ययन, (बाबू वाला
संस्करण पृष्ठ ७५६) सूत्र ७२ में आया है। उस पर दीपिका में लिखा है-"वक्र काष्ठं तद्वत् शेरते ये ते लगंडशायिनः" (पृष्ठ ७६५)।
पाँचवाँ चतुर्मास कयंगला(१) में दरिद्रथेरा(२) नामक पाखंडी रहते थे। वे सपत्नीक, सारम्भी और परिग्रह वाले थे। वहाँ बाग के मध्य में कुल-परम्परा से चला आता एक भव्य देवल था। भगवान महावीर रात को उस देवालय के एक ओर कोने में जाकर ध्यान में खड़े हो गये। १-कयंगला-मध्यदेश की पूर्वी सीमा पर था। इसका उल्लेख रामपाल
चरित्र में मिलता है। यह स्थान राजमहल जिले में है। श्रावस्ती के
पास भी एक कयंगला है । यह उससे भिन्न है । २---आवश्यक चूर्णि, प्रथम भाग, पत्र २८७ ।
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