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कर फेंक दिया था ।"
गोशाला को पहले तो विश्वास नहीं हुआ; लेकिन जब उसने उस पौधे से फली को तोड़कर देखा तो उसमें सात ही तिल निकले थे । इस घटना से गोशाला नियतिवाद के सिद्धान्त के प्रति और दृढ़ीभूत होकर बोला – “ इस प्रकार सभी जीव मरकर पुनः अपनी योनि में ही उत्पन्न होते हैं । '
(२१८)
२
यहाँ से गोशाला भगवान् से अलग होकर श्रावस्ती नगर में गया । और, वहाँ आजीवक मत को मानने वाली हालाहला नामक कुम्हारिन के यहाँ उसकी भट्ठीशाला में तेजोलेश्या की साधना करने लगा ।
भगवान् महावीर द्वारा बतायी विधि से, ६ महीने तक तप और आतापता के बल पर उसने तेजोलेश्या सिद्ध की। अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए वह कुएँ के पास गया और कंकड़ मार कर एक जल भरने वाली दासी का घड़ा तोड़ दिया। जब वह क्रुद्ध होकर गाली देने लगी, तो गोशाला ने तेजोलेश्या का प्रयोग किया। बिजली की तरह तेजोलेश्या ने उस दासी को भस्म कर दिया ।
अष्टांग निमित्त के पारगामी शो कलिन्द, करिणकार, अच्छिद्र, अग्निवेशान और अर्जुन – जो पहले पार्श्वपात्य साधु थे, और बाद में दीक्षा छोड़ कर निमित्त के बल पर अपनी आजीविका चलाते थे उसे गोशाला ने निमित्त - शास्त्र का अध्ययन किया । इस ज्ञान के द्वारा वह सुख, दुःख, लाभ, हानि, जीवन और मृत्यु — इन छः बातों में - सिद्धवचन नैमित्तिक बन गया ।
तेजोलेश्या और निमित्तज्ञान-जैसी असाधारण शक्तियों से गोशाला का महत्व खूब बढ़ा । प्रतिदिन उसके अनुयायियों और भक्तों की संख्या बढ़ने लगी । सामान्य भिक्षु गोशाला अब आचार्य की कोटि में पहुँच गया और
आजीवक - सम्प्रदाय का तीर्थंकर बन कर विचरने लगा ।
LAVORAREN
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१ -आवश्यक चूरिंग, प्रथम भाग, पत्र २६६ ।
२ -- भगवती सूत्र, शतक १५, सूत्र, १ ( तृतीय खंड, पृष्ठ ३६७ )
३ - त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ४, श्लोक १३५, पत्र ४५-२ ॥
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