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(१८) थककर उसने भगवान् पर कालचक्र चलाया, जिससे भगवान् घुटने तक जमीन में धँस गये । लेकिन, इतने पर भी भगवान् का ध्यान भंग नहीं हुआ ।
इन प्रतिकूल उपसर्गों से भगवान् को विचलित करने में अपने को असमर्थ पाकर, उसने अनुकूल उपसर्गों द्वारा भगवान् का ध्यान भंग करने का प्रयास किया ।
( १९ ) और एक विमान में बैठकर भगवान् के पास आया और बोला- “ कहिये आपको स्वर्ग चाहिए या अपवर्ग ?" लेकिन, भगवान् महावीर फिर भी अडिग रहे ।
(२०) अंत में, उसने अंतिम उपाय के रूप में एक अप्सरा को लाकर भगवान् के सम्मुख खड़ी कर दिया। लेकिन, उसके हाव-भाव भी भगवान् को विचलित नहीं कर सके ।
जब रात्रि समाप्त हुई और प्रातःकाल हुआ, तब भगवान् महावीर ने अपना ध्यान पूरा करके बालुका की ओर विहार किया । "
भगवान् महावीर की मेरु की तरह धीरता और सागर की तरह गम्भी'रता देखकर संगमक लज्जित हो गया । अब उसे स्वर्ग में जाते लज्जा लगने लगी । लेकिन, इतने पर भी उसका हौसला पूरा नहीं हुआ । अतः मार्ग में उसने ५०० चोरों को खड़ा करके भगवान् को भयभीत करना चाहा । · बालुका से भगवान् ने सुयोग, सुच्छेता, मलय और हस्तिशीर्ष आदि गाँवों में भ्रमण किया । इन सब गाँवों में संगमक ने कुछ न कुछ उपद्रव खड़े किये ।
एक समय भगवान् तोसलिगाँव के उद्यान में ध्यानारूढ़ थे । तब संगमक साधु का वेष बनाकर गाँव में गया और सेंध मारने लगा ।
१ - आवश्यकचूरिण, प्रथम भाग, पत्र ३११ ।
२ – इसका वर्तमान नाम धौलि है । यहाँ अशोक का लेख भी है । यह स्थान खण्डगिरी - उदयगिरी के निकट है ।
३ - आवश्यक रिण, प्रथम खण्ड, पत्र ३१२ ।
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