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________________ (२२४) (१८) थककर उसने भगवान् पर कालचक्र चलाया, जिससे भगवान् घुटने तक जमीन में धँस गये । लेकिन, इतने पर भी भगवान् का ध्यान भंग नहीं हुआ । इन प्रतिकूल उपसर्गों से भगवान् को विचलित करने में अपने को असमर्थ पाकर, उसने अनुकूल उपसर्गों द्वारा भगवान् का ध्यान भंग करने का प्रयास किया । ( १९ ) और एक विमान में बैठकर भगवान् के पास आया और बोला- “ कहिये आपको स्वर्ग चाहिए या अपवर्ग ?" लेकिन, भगवान् महावीर फिर भी अडिग रहे । (२०) अंत में, उसने अंतिम उपाय के रूप में एक अप्सरा को लाकर भगवान् के सम्मुख खड़ी कर दिया। लेकिन, उसके हाव-भाव भी भगवान् को विचलित नहीं कर सके । जब रात्रि समाप्त हुई और प्रातःकाल हुआ, तब भगवान् महावीर ने अपना ध्यान पूरा करके बालुका की ओर विहार किया । " भगवान् महावीर की मेरु की तरह धीरता और सागर की तरह गम्भी'रता देखकर संगमक लज्जित हो गया । अब उसे स्वर्ग में जाते लज्जा लगने लगी । लेकिन, इतने पर भी उसका हौसला पूरा नहीं हुआ । अतः मार्ग में उसने ५०० चोरों को खड़ा करके भगवान् को भयभीत करना चाहा । · बालुका से भगवान् ने सुयोग, सुच्छेता, मलय और हस्तिशीर्ष आदि गाँवों में भ्रमण किया । इन सब गाँवों में संगमक ने कुछ न कुछ उपद्रव खड़े किये । एक समय भगवान् तोसलिगाँव के उद्यान में ध्यानारूढ़ थे । तब संगमक साधु का वेष बनाकर गाँव में गया और सेंध मारने लगा । १ - आवश्यकचूरिण, प्रथम भाग, पत्र ३११ । २ – इसका वर्तमान नाम धौलि है । यहाँ अशोक का लेख भी है । यह स्थान खण्डगिरी - उदयगिरी के निकट है । ३ - आवश्यक रिण, प्रथम खण्ड, पत्र ३१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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