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जीर्ण सेठ की जब यह सब बात मालूम हुई कि भगवान् ने अन्यत्र पारणा कर लिया, तब उसे बड़ी निराशा हुई और अभिनव सेठ के भाग्य की जहाँ भगवान् ने आहार लिया था भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा । चतुर्मास समाप्त होते ही, भगवान् ने वैशाली से सुंसुमारपुर की ओर विहार किया ।
बारहवाँ वर्षावास
भगवान् ने ग्यारहवाँ चातुर्मास वैशाली नगरी में बिताया । यहाँ भूतानन्द' ने आकर प्रभु से कुशल पूछा और सूचित किया कि थोड़े काल में आपको केवल-ज्ञान और केवल दर्शन की प्राप्ति होगी । वहाँ से प्रभु सुंसुमार नामक नगर की ओर गये । वहाँ चमरेन्द्र का उत्पात हुआ । उसकी कथा भगवती सूत्र में निम्नलिखित रूप में आयी है ।
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१ - जैन - साहित्य में ६४ प्रकार के इन्द्र वर्णित हैं । २० इन्द्र भवनपति के, ३२ व्यन्तर के, २ ज्योतिष्क के और १० वैमानिक के । भवनपति के इन्द्र निम्नलिखित हैं प्रथम भवनपति के -१ चमर और २ बलि असुरकुमारेन्द्र हैं; द्वितीय के ३ धरण और ४ भूतानन्द नागकुमारेन्द्र हैं । तृतीय भवनपति के -५ वेणु और ६ वेणुदारी सुपर्णकुमारेन्द्र हैं चतुर्थ भवनपति के ७ हरि और हरिसह विद्युत्कुमारेन्द्र हैं; पंचम भवनपति के - ६ अग्निशिख और १० अग्निमारणव अग्निकुमारेन्द्र हैं; षष्ठम् भवनपति के - ११ पूर्ण और १२ वासिष्ठ दीपकुमारेन्द्र हैं; सप्तम् भवनपति के - १३ जलकान्त और १४ जलप्रभ उदधिकुमारेन्द्र हैं; अष्टम भवनपति के – १५ अमितगति और १६ अमित वाहन दिशाकुमारेन्द्र हैं । नवम भवनपति के - १७ वेलम्ब और १८ प्रभंजन;
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