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(२१६) स्त्री को चोर उठा ले गये। गोशंखी-नामक अहीर ने प्रातःकाल उस लड़के को देखा और उसको घर ले जाकर वह पुत्रवत् लालन-पालन करने लगा। इधर चोरों ने उस लड़के की माँ वेशिका को एक वेश्या के यहाँ चम्पा नगरी में बेच दिया। वेश्या ने उसको अपना सब व्यवहार सिखलाया। वेशिका का लड़का जब जवान हुआ तो एक समय मित्रों के साथ घी की गाड़ी लेकर चम्पा नगरी में गया। नगरनिवासियों को चतुर रमणियों के साथ विलास करते देखकर, वह भी क्रीड़ा के लिए वेश्याओं के मुहल्ले में गया। और, वहाँ एक सुन्दर वेश्या को देखकर उस पर मुग्ध हो गया। आभूषण आदि से उसे प्रसन्न करके रात को आने का संकेत करके वह चला गया। रात में स्नान-विलेपनादि से सज्ज होकर उस गरिएका के पास जाते हुए उसका पाँव विष्टा में पड़ गया। लेकिन, शीघ्रतावश मार्ग में खड़े हुए गाय के वत्स से पाँव रगड़ कर जाने लगा । वत्स के गाय से मनुष्यवाचा में कहा-'देखो माँ, यह मनुष्य विष्टायुक्त पाँव मुझ पर पोंछ रहा है।" वत्स की बात सुनकर गाय बोली-"बेटा ! चिंता मत करो। यह कामान्ध अपनी माता को ही भोगने के लिए जा रहा है । उसको ज्ञान ही कहाँ है ?"
इस बात को सुन कर चिन्तामग्न वह वेश्या के पास गया और धन देकर, उससे उसकी जीवन-कथा पूछने लगा । जब उस वेश्या ने अपनी सारी कथा कह सुनायी, तो वह लौट कर अपने ज्ञात माता-पिता बंधुमती-गोशंखी के पास गया और उनसे पूछने लगा-"आज सच बताइए कि क्या आप मेरे सगे माता-पिता हैं या आप लोगों ने मुझे मोल लिया है।" बंधुमती
और गोशंखी ने सारा वृतांत सच-सच कह सुनाया। अतः, वह सीधा अपनी माँ के पास पहुँचा और उस कुटनी से अपनी माता को छुड़ा कर अपने गाँव ले गया।
लेकिन, अपनी माता के साथ भोग-भोगने के विचार से उसे बड़ी ठेस लगी और वह तापस हो गया ।' १-आवश्यक चूणि, प्रथम भाग, पत्र २९७ । त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, पर्व
१०, सर्ग ४, श्लोक ७८-१०६ पत्र ४३-२-४४-२।
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