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दसवाँ चातुर्मास
- अनार्य-भूमि से निकल कर भगवान् और गोशाला सिद्धार्थपुर से की ओर जा रहे थे। रास्ते में सात पुष्प वाला एक तिल का पौधा देखकर गोशाला ने पूछा- "भगवन् ! क्या यह तिल का पौधा फलेगा ?"
भगवान् ने उत्तर दिया--"हाँ, यह पौधा फलेगा। उसमें सात पुष्पजीव हैं । वे एक ही फली में उत्पन्न होंगे।" यह सुनकर पीछे से गोशाला ने उस तिल के पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया, जिससे उसमें फल ही न लगे । और, वे दोनों ही कूर्मग्राम की ओर गये। लेकिन, भवितव्यता-वश उसी समय वर्षा हुई और वह तिल का पौधा एक गाय के खुर के नीचे आकर जमीन में चिपक गया।
महावीर और गोशाला कूर्मग्राम पहुँचे और वहाँ मध्याह्न समय हाथ ऊँचा करके जटा खोल कर सूर्यमंडल के सामने दृष्टि रख कर वैश्यायननामक बाल-तपस्वी' को घोर तपश्चर्या करते हुए देखा।
उस तापस का पूर्व जीवन इस प्रकार था । चम्पा और राजगृह के मध्य में गोबर नाम का एक गाँव था। वहाँ गोशंखी नाम का एक अहीर कुटुम्बी रहता था। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती था। वह बंध्या थी। उसके पास खेटक नाम का एक गाँव था। चोरों ने आकर उस गाँव को लूटा और लोगों को पकड़ ले गये । उस गाँव में वेशिका नाम की एक स्त्री थी। जो अत्यन्त रूपवती थी, वह सप्रसूता थी, उसका पति मारा गया था । अतः उसको जो लड़का पैदा हुआ उसको एक वृक्ष के नीचे रख कर उस १-लौकिक तापसः राजेन्द्राभिधान, भाग ५, पृष्ठ १३१८, 'फुलिश ऐसे टिक' -हिस्ट्री आव आजीवक, पृष्ठ ४९ । २-त्रिषष्टिशालाका पुरुष चरित्र, पर्व १०, सर्ग ४, श्लोक ७८, पत्र ४३-२
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