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(२१०) पुरितामल नगर में वग्गुर नामका श्रेष्ठि रहता था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। वह वंध्या थी। संतान के लिए उसने बहुत से देवी-देवताओं की मानताएं मानी; पर उसे पुत्र न हुआ। एक दिन वह शकटमुख उद्यान में क्रीड़ा करने गया। घूमते हुए, उसने एक पुराना मंदिर देखा, जिसमें भगवान् मल्लिनाथ की मूर्ति विराजमान थी। उसने उसी समय प्रतिज्ञा की कि यदि मुझे पुत्र या पुत्री हुई, तो मैं भक्तिभाव से भगवान मल्लिनाथ का मंदिर निर्माण करवाऊँगा। भाग्य से भद्रा को गर्भ रह गया और जब से गर्भ रहा, तब से ही उन्होंने देवालय निर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया। अब वह तीनों काल भगवान की पूजा करता और पक्का श्रावक बन गया। योग्य समय पर वग्गुर को पुत्र प्राप्ति हुई। श्रेष्ठि और उनकी पत्नी दोनों ही अति प्रसन्न हुए और भगवान मल्लिनाथ की पूजा करने चले। उसी उद्यान में भगवान महावीर ध्यानावस्थित थे। उसी समय ईशान देवेन्द्र सब ऋद्धियों के साथ भगवान का वंदन करने आया। बंदन करके वह जा रहा था, ठीक उसी समय वग्गुर सेठ भगवान् मल्लिनाथ की पूजा के लिए जा रहे थे। इन्द्र बोला-"अरे क्या तू प्रत्यक्ष तीर्थंकर को नहीं जानता, जो मूर्ति की पूजा करने जा रहा है । यह भगवान महावीर स्वामी जगत के नाथ और सभी के पूज्य हैं। तब वग्गुर सेठ ने वहाँ आकर 'मिच्छामि दुक्कड़म' करके भगवान की पूजा की।
[ पृष्ठ २०६ की पादटिप्पणि का शेषांश ] प्रयाग कहते (वसुदेवहिंडी, पृष्ठ १९३) । यहीं अनिकापुत्र नामक एक साधु ने निर्वाए प्राप्त किया। निकट के देवताओं ने उस समय वहाँ उत्सव मनाया तब से यह प्रयाग तीर्थ माना जाने लगा (प्रयाग इति तत्तीर्थं प्रथितं त्रिजगत्यपि परिशिष्ट पर्व, सर्ग ६, श्लोक १६६) यहाँ चित्र नाम के एक ऋशि हुए हैं (उत्तराध्ययन सटीक अ० १३, गाथा २, पत्र १६८-१) विपाकसूत्र में यहाँ के एक राजा महाबल का उल्लेख मिलता है ( ३, ५७ पृष्ठ २६)
२-आवश्यक चूणि, प्रथम खंड, पत्र २६५ ।
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