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(२०८) इ-संयुक्तनिकाय की भूमिका में बुद्धकालीन भारत के भौगोलिक परिचय में भिक्षु जगदीश और धर्मरक्षित ने आळवी की पहचान उन्नाव जिले के नेवल से की है। (पृष्ठ ६)
पर मेरा मत यह है कि, महावीर के विहार में आयी आलंभिया न तो उन्नाव में हो सकता है और न कानपुर में । भगवान् का विहार-क्रम था मगध, आलंभिया, कुंडाकसन्निवेश, मईनसन्निवेश, बहुसाल, लोहार्गला और पुरिमताल । अतः निश्चय रूप में इस स्थान को प्रयाग से पूर्व में (प्रयाग मगध के बीच में) होना चाहिए । डाक्टर हार्नेल ने विला विहार-क्रम मिलाये ही प्रयाग से पश्चिम में उसे पहचानने की चेष्टा की।
आठवाँ चतुर्मास कुंडाक-सन्निवेश' में भगवान् वासुदेव के मन्दिर में कुछ समय तक रहे और वहाँ से विहार कर मद्दन्न२-सन्निवेश में जाकर बल्देव के मंदिर में हठरो। वहाँ से भगवान् बहुसालग नामक गाँव में गये और शालवन के उद्यान में स्थिर हो गये। यहाँ शालार्य नामक व्यन्तरी ने भगवान् के ऊपर बहुत उपसर्ग किये; लेकिन अंत में थक कर के अपने स्थान पर वापस लौट गयी । वहाँ से भगवान् लोहार्गला नामक स्थान पर गये । १-आवश्यक चूरिण, प्रथम खंड, पत्र २६३ २–मद्दन का उल्लेख महामयूरी में भी मिलता है। वहाँ पंक्ति इस प्रकार
है 'मर्दने मंडपो यक्षो' । कुछ लोग मंडप को स्थान वाची मानकर मर्दन को व्यक्तिवाची मानते हैं। पर, यह ठीक नहीं है। मर्दन स्थानवाची है और मंडप व्यक्तिवाची। महामयूरी में वरिणति 'मर्दन' और
महावीर स्वामी के विहार का 'मद्दन' वस्तुतः एक ही स्थान हैं। ३-आबश्यक चूरिण, प्रथम खंड, पत्र २१४
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