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(२०२) अतः भगवान् ने लाढ़' देश की ओर विहार किया। जो उस समय अनार्य देश गिना जाता था।
जब भगवान् अनार्य देश में गये तो उन्हें वहाँ एकदम गये-बीते स्थान पर ठहरना पड़ता। बैठने के लिए उनको आसन भी धूल-भरे और विषम मिलते थे। वहाँ के अनार्य लोग भगवान् को मारते और दातों से काटने दौड़ते थे। भगवान् को वहाँ बड़ी कठिनाई से रूखा-सूखा आहार मिलता था। वहाँ के कुत्ते भगवान् को कष्ट देते और काटने के लिए ऊपर गिरते थे। वहाँ के अनार्य और असंस्कारी लोगों में हजार में से कोई एक उन कष्ट देते हुए और काटने के लिए दौड़ते हुए कुत्तों को रोकता था। शेष लोग तो कुतूहल से छू-छू करके उन कुत्तों को काटने के लिए प्रेरित करते । वे अनार्य लोग भगवान् को दण्डादि से भी मारते थे। इन सब कष्टों को शान्ति और समभाव से भगवान् ने सहन किया।२ .
भगवान् राढ़ देश से वापस लौट रहे थे, और उस प्रदेश की सीमा पर आये हुए पूर्णकलश नाम के अनार्य गाँव में से निकल कर, आप आर्यदेश की सीमा में आ रहे थे, तब रास्ते में उनको दो चोर मिले जो अनार्य प्रदेश में चोरी करने जा रहे थे । भगवान् का सामने मिलना उन्होंने अपशकुन समझा
और उनको मारने दौड़े। उस समय इन्द्र ने स्वयं आकर आक्रमण को निष्फल किया और चोरों को उचित रूप में दण्डित किया ।
१-इसकी राजधानी कोटिवर्ष थी। आधुनिक बानगढ़ ही प्राचीन कोटिवर्ष
है । इसके दो भाग थे उत्तर राढ़ और दक्षिण राढ़। इनके बीच में अजय नदी बहती थी। कुछ लोग भ्रम से इसे गुजरात देशीय लाट मानते हैं। इस सम्बन्ध में उन्हें मेरी पुस्तक 'वीर-विहार-मीमांसा' (हिन्दी) देखनी चाहिए। वस्तुतः लाढ़ प्रदेश बंगाल में गंगा के पश्चिम में था । आजकल के तामलुक, मिदनापुर, हुगली और बर्दवान जिले इस प्रदेश के अन्तर्गत थे। मुर्शिदाबाद जिले का कुछ भाग इसकी उत्तरी
सीमा के अंतर्गत था। २-आचारांग, नवम स्कंध, तृतीय उद्देशक, गाथा १-४।
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