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(१९९) उस दिन धीरे-धीरे पानी की बूंदें पड़ रही थीं और ठंडी हवा चल रही थी। माघ का महीना होने के कारण, काफी ठंडक थी। उस दिन उस देवालय में धार्मिक उत्सव था। अतः स्त्री-पुरुष और बालक मन्दिर में नृत्य करने लगे। गोशाला सर्दी से परीशान था, इस कारण उसे इस प्रकार का गाना-बजाना अच्छा नहीं लगा। अतः वह उन लोगों की धार्मिक प्रवत्ति की निन्दा करने लगा कि यह किस प्रकार का धर्म कि जिसमें स्त्री-पुरुष साथ मिलकर नाचें और गायें। अपने धर्म की निन्दा सुनकर गाँव वालों ने गोशाला को मंदिर से बाहर निकाल दिया। - बाहर बैठा-बैठा गोशाला ठंड से काँपने लगा और कहने लगा कि इस संसार में सत्य बोलने वाले को ही विपत्ति आती है। लोगों को गोशाला की दशा पर दया आयी और देवार्य का शिष्य समझ कर उन्होंने उसको देवालय के अंदर बुला लिया। गोशाला इस पर भी अपनी आदत से बाज नहीं आया और फिर निन्दा करनी शुरू कर दी। गोशाला के ब्यवहार से युवक उत्तेजित हुए और उसे मारने दौड़े। पर, वृद्धों ने उन्हें मना कर दिया और आदेश किया कि बाजे इतनी जोर से बजाये जायें कि गोशाले की आवाज सुनायी ही न पड़े। इतने में सुबह हो गयी और भगवान ने वहाँ से श्रावस्ती की ओर विहार किया।
भगवान् श्रावस्ती' के बाहर ध्यान में स्थिर हो गये। भिक्षा-काल होने पर गोशाला ने उनसे भिक्षा के लिए चलने को कहा। भगवान ने उत्तर दिया—“आज मेरा उपवास है ।" तब गोशाला ने पूछा-'अच्छा बताइए, आज भिक्षा में क्या मिलेगा ?" भगवान् ने उत्तर दिया- "मनुष्य का मांस ।" उसने सोचा–“यहाँ तो मांस की ही आशंका नहीं है फिर मनुष्य के माँस की कहाँ बात?" यह विचार कर के वह भिक्षा के लिए चला। १-श्रावस्ती-आजकल ताप्ती के किनारे का सहेत-महेत ही प्राचीन श्रावस्तौ
है। प्राचीन काल में यह कोशल की राजधानी थी। यह साकेत से ६ योजन राजगृह से उत्तर-पश्चिम में ४५ योजन, संकस्स से ३० योजन, तक्षशिला १४७ योजन, सुप्पारक से १२० योजन थी। राप्ती का प्राचीन नाम अचिरवती या अजिरवती है। जैन-सूत्रों में इसे इरावदी कहा है।
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