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ब्राह्मणगाँव से भगवान् गोशाला के साथ चम्पा' नगरी को गये और तीसरा चातुर्मास भगवान् ने यहीं व्यतीत किया और उत्कुटुक (उकडूं) आदि विविध आसनों द्वारा ध्यान करके व्यतीत किया । प्रथम द्विमासी तप का पारना भगवान् ने चम्पा से बाहर किया ।
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चम्पा नगरी से भगवान ने कालायसन्निवेश की ओर विहार किया ।
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१- आवश्यक चूरिण, प्रथम भाग, पत्र २८४ ॥
२- प्राचीन काल में यह अंग देश की राजधानी थी ( वृहत्कल्प सूत्र सटीक विभाग ३, पृष्ठ ९१३ ) । आधुनिक भागलपुर के निकट पूर्व में चम्पा - नगरी है, यही प्राचीन काल की चम्पा है । इसके निकट ही चम्पा नाम को नदी बहती है | ( देखिये, वीर - विहार-मीमांसा, हिन्दी, पृष्ठ २५ । )
चौथा चतुर्मास
कालाय सन्निवेश में आकर भगवान् एक खंडहर में ध्यान में स्थिर हो गये ।' गोशाला भी द्वार के पास छिप कर बैठ गया । रात्रि को गाँव के मुखिया को पुत्र सिंह विद्युन्मति नामकी दासी के साथ कामभोग की इच्छा से वहाँ आया । वहाँ कोई है तो नहीं, यह जानने की इच्छा से उसने एकदो आवाजें लगायीं । जब कोई प्रत्युत्तर न मिला, तो एकान्त समझ कर उन्होंने अपनी कामवासना पूरी की। जब वे लौट रहे थे, गोशाला ने विद्युन्मति का हाथ पकड़ लिया । गोशाला के इस व्यवहार से रुष्ट होकर सिंह ने उसे पीटा |
- आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध पत्र २८४ ॥
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