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________________ (१६५) ब्राह्मणगाँव से भगवान् गोशाला के साथ चम्पा' नगरी को गये और तीसरा चातुर्मास भगवान् ने यहीं व्यतीत किया और उत्कुटुक (उकडूं) आदि विविध आसनों द्वारा ध्यान करके व्यतीत किया । प्रथम द्विमासी तप का पारना भगवान् ने चम्पा से बाहर किया । .२ चम्पा नगरी से भगवान ने कालायसन्निवेश की ओर विहार किया । १. १- आवश्यक चूरिण, प्रथम भाग, पत्र २८४ ॥ २- प्राचीन काल में यह अंग देश की राजधानी थी ( वृहत्कल्प सूत्र सटीक विभाग ३, पृष्ठ ९१३ ) । आधुनिक भागलपुर के निकट पूर्व में चम्पा - नगरी है, यही प्राचीन काल की चम्पा है । इसके निकट ही चम्पा नाम को नदी बहती है | ( देखिये, वीर - विहार-मीमांसा, हिन्दी, पृष्ठ २५ । ) चौथा चतुर्मास कालाय सन्निवेश में आकर भगवान् एक खंडहर में ध्यान में स्थिर हो गये ।' गोशाला भी द्वार के पास छिप कर बैठ गया । रात्रि को गाँव के मुखिया को पुत्र सिंह विद्युन्मति नामकी दासी के साथ कामभोग की इच्छा से वहाँ आया । वहाँ कोई है तो नहीं, यह जानने की इच्छा से उसने एकदो आवाजें लगायीं । जब कोई प्रत्युत्तर न मिला, तो एकान्त समझ कर उन्होंने अपनी कामवासना पूरी की। जब वे लौट रहे थे, गोशाला ने विद्युन्मति का हाथ पकड़ लिया । गोशाला के इस व्यवहार से रुष्ट होकर सिंह ने उसे पीटा | - आवश्यक चूणि, पूर्वार्द्ध पत्र २८४ ॥ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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