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________________ (१६४) गोशाला ने भगवान् का कथन ग्वालों को बता दिया। इस प्रकार की भविष्यवाणी सुनकर ग्वाले भयग्रस्त होकर बड़ी सावधानी से खीर पकाने लगे। बाँसों की खपाचों से, उस हाँड़ी को ग्वालों ने चारों ओर से बाँध दिया और उसको चारों ओर से घेर कर बैठ गये। भगवान् तो आगे चले गये; लेकिन खीर खाने की लालच से गोशाला वहीं बैठा रहा । हाँड़ी दूध से भरी हुई थी और उसमें चावल भी अधिक था । अतः, जब चावल फूले तो हाँड़ी फट गयी और सब खीर नीचे लुढ़क गयी। ग्वालों की आशा पर पानी फिर गया और गोशाला मुँह नीचा किये हुए वहाँ से रवाना हो गया। अब उसे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि 'जो कुछ होनेवाला है, वह मिथ्या नहीं हो सकता।' विहार करते हुए भगवान् ब्राह्मणगाँव पहुँचे। गोशाला भी यहाँ आ गया । इस गाँव के दो भाग थे । एक नन्द पाटक और दूसरा उपनन्द पाटक। नन्द-उपनन्द दो भाई थे। ये अपने-अपने पंक्ति के भाग को अपने-अपने नाम से पुकारते थे। भगवान् महावीर नन्दपाटक में नन्द के घर पर भिक्षा के लिए गये । भिक्षा में भगवान् को दहीमिश्रित भात मिला। गोशाला उपनन्द पाटक में उपनन्द के घर भिक्षा के लिए गया । उपनन्द की आज्ञा से उसकी दासी गोशाला को बासी भात देने लगी ; पर गोशाला ने लेने से इनकार कर दिया और बोला-"तुम्हें बासी भात देते लज्जा नहीं लगती ?" गोशाला की बात सुनकर उपनन्द ने क्रोध में आकर दासी को आदेश दिया कि उसे लेना हो तो ले नहीं उसके सिर पर पटक दे। दासी ने वैसा ही किया। उससे क्रुद्ध होकर गोशाला ने श्राप दिया-“यदि मेरे गुरु में तप और तेज हो तो तुम्हारा प्रासाद जलकर भस्म हो जाय ।" निकट के व्यन्तर-देवों ने विचार किया कि वचन झूठा न हो जावे, इसलिए उन्होंने उक्त महल को भस्म कर दिया । २-यह ब्राह्मण-गाँव राजगृह से चम्पा जाते हुए मार्ग में पड़ता था- देखिये वैशाली, हिन्दी, पृष्ठ ७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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