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(१७८) पउमचरिय में भी दीवार का उल्लेख है। अंगविज्जा में सुवरणमासको व त्ति तहा रयय मासओ। दीणारमासको व त्ति तधोणाणं च मासको ॥
-पृष्ठ ६६, गाथा १८५ । तथा
सुवरणकाकणी व त्ति तथा मासककाकरणी। तधा सुवरणगुञ्ज त्ति दीणारि त्ति व जो वदे ॥
—पृष्ठ ७२, गाथा ३६६ । गाथाएँ आयी हैं। इनमें 'दीनार' का स्पष्ट वर्णन है।
वसुदेवहिंडी में पृष्ठ २८९ पर दीनार शब्द आया है। - समराइच्चकहा में भी दीवार का उल्लेख आया है, इसे डाक्टर याकोबी ने कथासार में पृष्ठ ४८, ५७, ७८ तथा १०१ में लिखा है ।
'दीणार' शब्द वैदिक-ग्रंथों में भी आता है:(१) 'हरिवंश पुराण' में भी दीनार का उल्लेख है। (२) कार्षापणो दक्षिणस्यां दिशि रूढः प्रवर्तते ।
पणैर्विद्धः पूर्वस्यां षोडशैव पणः स तु ॥११६ ॥ पंचनद्याः प्रदेशे तु या संज्ञा व्यावहारिकी। कार्षापण प्रमाणं तु निबद्धमिह वै तया ॥११७॥ कार्षापणोऽब्धिका ज्ञेयश्चत (स्रोवोस्रस्तु) धानकम् । ते द्वादश सुवणे स्याद् दीना(रा?र) श्चित्रकः स्मृतः॥११८।।
-नारदस्मृति १८ अ०; स्मृति संदर्भ, खंड १, पृष्ठ ३३० (३) 'प्राची कांचनदीनार चक्रे इव' ऐसा उल्लेख सुबन्धु-रचित वासव
दत्ता (५-वीं शताब्दी ) में आता है, जिससे स्पष्ट है कि, यह सोने के
सिक्के का नाम है। (४) दशकुमार चरित्र में (द्वितीय वृत्ति, निर्णयसागर प्रेस, पृष्ठ ६७ ) में
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