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१ – 'कथासरित्सागर' ( अध्याय २४, २५) में एक वर्द्धमान का उल्लेख मिलता है जो प्रयाग और वाराणसी के बीच में स्थित था । 'मारकण्डेय पुराण' तथा 'वेताल-पंचविशति' में भी इसका उल्लेख मिलता है ।
२ - शाहजहाँपुर से २५ मील दूर बाँसखेड़ा में प्राप्त ताम्र पत्र में वर्द्धमान के लिए वर्द्धमान - कोटि का उल्लेख आया है ( देखिये मारकण्डेय पुराण, अध्याय ५८ ) । यहाँ ई० पूर्व ६३८ में हर्षवर्द्धन ने पड़ाव डाला था । यह वर्द्धमान- कोटी आज दिनाजपुर जिले में 'वर्द्धमान - कोटी' के नाम से विख्यात है । देवीपुराण अध्याय ४६ में वर्द्धमान का उल्लेख बंग से पृथक स्वतन्त्र देश के रूप में आया है ।
३ -- स्पेंस हार्डी-लिखित 'मैनुअल आव बुद्धिज़िम' में दाँता के निकट वर्द्धमान के अवस्थित होने का उल्लेख है ( पृष्ठ ४८० ) ।
-'जर्नल आव एशियाटिक सोसायटी आव बेंगाल' १८८३ में 'ललितपुरइंस्क्रिप्शन' शीर्षक लेख में एक वर्द्धमान का उल्लेख है, जो मालवा में था ।
- एक वर्द्धमान अथवा वर्द्धमानपुर सौराष्ट्र में स्थित है, जो आज कल 'बड़वान' के नाम से विख्यात है । यहाँ १४२३ ई० में मेरुतुङ्ग नामक जैन विद्वान ने 'प्रबन्ध - चिन्तामरिण' की रचना की थी ।
६ - एक वर्द्धमानपुर का उल्लेख दीपवंश ( पृष्ठ ८२ ) में आया है इसी को ब्राद के आलेखों में 'वर्द्धमान-भुक्ति' या वर्द्धमान नाम से लिखा गया है । यह कलकत्ता से ६७ मील दूरी पर स्थित बर्दवान नगर है ।
यह अस्थिकग्राम जिसका पूर्व नाम वर्द्धमान था, इन सभी से भिन्न है । क्योंकि ये सभी वर्द्धमान विदेह देश के बाहर हैं और अस्थिकग्राम जहाँ भगवान महावीर ने अपना प्रथम चतुर्मास बिताया था, विदेह देश में आया हुआ था । उसी का दूसरा नाम 'हस्तिग्राम' है !
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